वट सावित्री व्रत इस वर्ष 26 मई यानी सोमवार को मनाया जाएगा. वहीं, इससे पहले 25 मई को सुहागन औरतें “नहाय-खाय” की परंपरा निभाएगी. बता दें, 26 मई को सुबह 10:34 बजे तक चतुर्दशी रहेगी, इसके बाद अमावस्या तिथि शुरू हो जाएगी, जो मंगलवार सुबह 8:30 बजे तक चलेगी. इसीलिए सावित्री अमावस्या का व्रत सोमवार 26 मई को ही रखा जाएगा. इसी दिन रात्रि में फलहारिणी काली पूजा भी की जाएगी.
Read more: बिहार में मियाजाकी आम खूब चर्चा में, जापान से आई वैरायटी ने कोढ़ा में मचाई धूम
बरगद की पूजा: अखंड सौभाग्य का प्रतीक
इस दिन व्रती महिलाएं फलदार बरगद (वट) के पेड़ की पूजा करती हैं. पूजन के दौरान महिलाएं कच्चे धागे या मौली से 108 बार परिक्रमा करती हैं. इसी कारण इसे स्थानीय भाषा में “बरगदाही” पूजा भी कहा जाता है.
सोलह श्रृंगार और पूजा विधि
व्रत करने वाली महिलाएं (परवैती) सुबह स्नान कर उपवास रखती हैं और सोलह श्रृंगार के साथ सजकर पूजा करती हैं. व्रत के दौरान वे सत्यवान-सावित्री, यमराज और वट वृक्ष की पूजा करती हैं. पूजन के अंत में महिलाएं पंखा व श्रृंगार सामग्रियां ब्राह्मण को दान देती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं.
Read more: झारखंड के इस जिले में मिल रहा सिलेंडर सस्ता.. जानें ताजा रेट
धर्म, साहस और बुद्धिमत्ता की प्रतीक सावित्री
वट सावित्री व्रत केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक प्रेरणात्मक कथा पर आधारित पर्व है. सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाकर यह सिद्ध कर दिया कि नारी चातुर्य, साहस और भक्ति से मृत्यु को भी मात दे सकती है. यह व्रत सास-ससुर को वस्त्र दान देने और नवविवाहित दंपत्तियों द्वारा सामूहिक पूजन की परंपरा से भी जुड़ा होता है.
पारण और विश्राम की परंपरा
पूजा के बाद व्रती महिलाएं पारण करती हैं. कुछ स्थानों पर उसी दिन, तो कुछ जगहों पर अगले दिन सूर्योदय के बाद. पारण के बाद वे बरगद के पेड़ की छाया में विश्राम करती हैं.
Read more: आज का दिन रहेगा खास: जानिए किन राशियों को मिलेगी सफलता
जहां बरगद न हो वहां कैसे करें पूजा
यदि किसी स्थान पर बरगद का पेड़ नहीं हो, तो लोग नर्सरी से पौधा लाकर पूजन कर सकते हैं और बाद में उसे जंगल या सड़क किनारे रोपित कर दें.
यह व्रत हिंदू धर्म में पति की दीर्घायु, परिवार की समृद्धि के रूप में मनाया जाता है.










