Ranchi: झारखंड में सियासी बिसात बिछ चुकी है। घाटशिला उपचुनाव अब सिर्फ एक विधानसभा सीट की लड़ाई नहीं रह गई, बल्कि यह राज्य की राजनीति के बदलते समीकरणों की असल तस्वीर पेश कर रही है। एनडीए हो या महागठबंधन, दोनों ही गठजोड़ इस सीट पर झंडा गाड़ने की पूरी तैयारी में जुटे हैं। लेकिन सबसे ज्यादा निगाहें महागठबंधन पर टिकी हुई हैं। क्योंकि बिहार में जिस झामुमो ने महागठबंधन से किनारा कर लिया था, वही अब झारखंड में उसी गठबंधन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मैदान में उतरी है।
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बिहार में अलग और झारखंड में साथ क्यों
दरअसल, घाटशिला में चुनावी माहौल पूरे शबाब पर है। जनसंपर्क अभियान के बीच नेताओं की बयानबाजी ने भी तापमान बढ़ा दिया है। बीते दिनों हुई महागठबंधन की प्रेस वार्ता में यह ऐलान किया गया कि घाटशिला में झामुमो, कांग्रेस, राजद समेत अन्य गठबंधन के दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इस घोषणा ने झारखंड की राजनीति में नया रंग भर दिया, लेकिन साथ ही सवालों की झड़ी भी लगा दी, कि आखिर बिहार में अलग और झारखंड में साथ क्यों? देखा जाए तो बिहार चुनाव के दौरान झामुमो ने पहले 12 सीटों पर लड़ने का ऐलान किया था। लेकिन सीट बंटवारे के मसले पर महागठबंधन के भीतर मतभेद गहराते गए। झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने चेतावनी दी थी कि अगर जल्द फैसला नहीं हुआ तो पार्टी अकेले मैदान में उतरेगी। नतीजा यह हुआ कि झामुमो बिहार में छह सीटों पर निर्दलीय रूप में उतरने की बात तो की, पर अंततः एक भी सीट पर प्रत्याशी नहीं दे सकी।
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सुदिव्य सोनू ने खुले मंच से राजनीतिक धूर्तता का लगाया था आरोप
वहीं जब झामुमो के किसी भी प्रत्याशी बिहार चुनाव में नहीं उतरे तो नाराज होकर झारखंड के मंत्री सुदिव्य सोनू ने खुले मंच से राजद और कांग्रेस पर राजनीतिक धूर्तता का आरोप जड़ दिया था। उन्होंने कहा था झामुमो ने हमेशा गठबंधन धर्म निभाया है, लेकिन बिहार में झारखंडी चेतना और हितों से विश्वासघात हुआ है। यह हम झारखंडी कभी नहीं भूलेंगे। सोनू का यह बयान झामुमो के भीतर नाराजगी और असंतोष की झलक साथ तौर पर दिखा रहा था। लेकिन जैसे चुनाव नजदिक आए झामुमो घाटशिला के चुनाव में साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी। हालांकि बात चीत के दौरान कुणाल षाडंगी ने साफ बताया था कि बिहार और घाटशिला चुनाव खत्म होने के बाद महागठबंधन की बड़ी बैठक बुलाई जाएगी। उसमें गठबंधन की दिशा और रिश्तों को लेकर अहम फैसला लिया जाएगा। अंदरखाने यह भी चर्चा है कि झामुमो भविष्य में गठबंधन की शर्तें फिर से तय करना चाहती है। या बिहार चुनाव का नुक्सान राज्यसभा में सीट लेकर चुक्ता कर सकती है।
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घाटशिला सीट भाजपा के लिए ला सकता है नया सवेरा
उधर, भाजपा ने इस पूरे घटनाक्रम पर तीखी चुटकी ली है। पार्टी प्रवक्ताओं ने कहा है कि बिहार में झामुमो को धक्के मारकर बाहर निकाला गया, लेकिन झारखंड में वही झामुमो गठबंधन धर्म की दुहाई दे रही है। यह जनता को भ्रमित करने की कोशिश है। देखा जाए तो घाटशिला उपचुनाव झामुमो के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है। अगर महागठबंधन यहां जीतता है, तो झामुमो अपने अंदरूनी असंतोष को दबाने में सफल रहेगा। लेकिन हार की स्थिति में यह चुनाव झारखंड की सत्ता समीकरण को हिला सकता है। और भाजपा के लिए नया सवेरा ला सकता है।
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सियासत की बिसात पर किस तरफ पलटेगा बाजी
लेकिन देखा जाए तो घाटशिला झामुमो से कही ज्यादा भाजपा के लिए सियासी इम्तिहान की कसौटी बन चुका है। बिहार में हुए तकरार के बाद जाहिर है झारखंड में पार्टी की साख दांव पर है। लेकिन भाजपा भी अंदर ही अंदर बैठक और प्रचार कर तमाम चुनौतियों से निपटने की योजना बना रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या झामुमो गठबंधन की मजबूरी साबित होगा या फिर झारखंड में अपनी ताकत के दम पर एक बार फिर सियासत की बिसात पर बाजी पलट देगा।







