खूंटी। वैशाख महीने की दोपहर में चिलचिलाती धूप में सड़क किनारे यदि कोई बच्चा पेट और परिवार के लिए सामान बेचता दिख जाए, तो एक बार आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि जिस उम्र में बच्चे के हाथों में कॉपी-पेंसिल होनी चाहिए, वह सड़क किनारे दो पैसे कमाने की फिक्र में चिलचिलाती धूप में बैठा सामान बेच रहा है।
आखिर सरकार का यह नारा कि कोई बच्चा स्कूल जाने से वंचित न रहे, कहां तक सार्थक हो रहा है। मन को टिस पहुंचाने वाला कुछ ऐसा ही नजारा खूंटी-तोरपा रोड पर मुंडा कुंजला गांव के पास देखने को मिला, जहां महज छह-सात साल का एक बच्चा चिलचिलाती धूप में बैठकर मधु बेच रहा था। पूछने पर वह इतना ही बता पाया कि वह गया का रहने वाला है। इसके अलावा उसे न अपने गांव या थाना के बारे में कोई जानकारी है। उसने अपना नाम गोलू बताया। उसने बताया कि उसकी मां गया में रहती है। वह अपने पिता के साथ मधु बेचने खूंटी आया है।
बच्चे का पिता पेड़ों से मधुमक्खी के छाता से मधु निकालते हैं और वह सडक किनारे मधु बेचता है। उसके पिता दूसरी जगह दुकान लगाते हैं। उसने बताया कि वह चार सौ रुपये प्रति किलो की दर पर मधु बेचता है। गोलूू ने बताया कि उसने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा है। इसलिए उसे अक्षर ज्ञान भी नहीं है। गोलू ने कहा घर में पैसा नहीं था, इसलिए वह कभी स्कूल नहीं गया।
शिक्षा विभाग के मुंह पर तमाचा है: अनिल भगत
ऐसे निरक्षर बच्चों के बारे में पूछे जाने पर ग्रामीण विकास विभाग के मास्टर ट्रेनर और तोरपा प्रखंड के पूर्व उप प्रमुख अनिल भगत कहते हैं कि बच्चों का इस तरह रोटी के लिए अपनी जान को दांव पर लगा देना सरकार और शिक्षा विभाग के मुंह पर तमाचा है। उन्होंने कहा कि झारखंड हो या बिहार, सभी जगहों पर सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर काफी नीचा है। शिक्षकों को पढ़ाने के बदले गैर शैक्षणिक कार्यो में लगाया जाता है। भगत ने कहा कि जब तक शिक्षा के बारे में लोगों में जागरुकता नहीं आएगी, तब तक ऐसे दृश्य दिखते ही रहेंगे।