Ranchi: झारखंड में जहां एक ओर सरकार जल, जंगल और ज़मीन की सुरक्षा का दावा करती है, वहीं दूसरी ओर वन विभाग के ही शीर्ष अधिकारी पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं झारखंड राब्ता हज कमेटी के अध्यक्ष हाजी मतलुब इमाम ने राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक अशोक कुमार पर आरोप लगाया है कि वह अपने रिटायर होने से ठीक पहले व्यक्तिगत लाभ के उद्देश्य से पसंदीदा अधिकारियों को बड़े क्षेत्रों का अतिरिक्त प्रभार दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि अशोक कुमार इसी सप्ताह सेवानिवृत्त होने वाले हैं और रिटायरमेंट से ठीक पहले यह कदम उठाना विभागीय हितों के विपरीत है, जो राज्य के वन क्षेत्र के लिए घातक साबित हो सकता है।
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विभाग में 1200 पद खाली लेकिन फिर भी अधिकारियों को दिया जा रहा अतिरिक्त प्रभार
सूत्रों के अनुसार एक सूची जारी हुई है, जिसमें स्पष्ट लिखा गया है कि वर्तमान में जिन रेंजर्स को जिस क्षेत्र में पदस्थापित किया गया है, उन्हें अतिरिक्त प्रभार भी सौंप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर प्रमोद कुमार, जो फिलहाल गढ़वा उत्तरी वन प्रमण्डल में कार्यरत हैं, उन्हें इसी क्षेत्र के गढ़वा वन प्रक्षेत्र का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। इसी तरह अजय कुमार टोप्पो, जो मेदिनिगर व्याघ परियोजना उत्तरी प्रमण्डल में तैनात हैं, उन्हें रंका पश्चिमी वन प्रक्षेत्र और कुटकू वन प्रक्षेत्र गढ़वा दक्षिणी वन प्रमण्डल की जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। वहीं राकेश कुमार सिंह, जो अभी धनबाद शहरी वानिकी प्रक्षेत्र के प्रभारी हैं, उन्हें पतरातु वन प्रक्षेत्र और रामगढ़ वन प्रमण्डल का भी प्रभार दे दिया गया। जानकारी के अनुसार यह आदेश 10 नवंबर 2025 को जारी किया गया है, जबकि विभाग में गार्ड और रेंजर के कुल 1200 पद फिलहाल रिक्त पड़े हुए हैं। ऐसे में वर्तमान तैनाती के बजाय अतिरिक्त जिम्मेदारियां देना विभागीय कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा करता है।
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राज्य में रेंजरों की भारी कमी
हाजी मतलुब इमाम ने यह भी बताया कि झारखंड में रेंजरों की भारी कमी है, लेकिन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की प्राथमिकता इस कमी को दूर करने की बजाय चहेते रेंजर्स को प्रभावशाली क्षेत्रों का प्रभार देने में दिखाई दे रही है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने इस मसले को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंचाया है। उनका आरोप है कि जिन रेंजर्स को धनबाद जैसे संवेदनशील क्षेत्र का प्रभार संभालने की जिम्मेदारी मिली है, उन्हें रांची और दुमका जैसे बड़े क्षेत्रों का अतिरिक्त प्रभार भी दिया जा रहा है, जिससे डुअल चैनल व्यवस्था बन सकती है। यह न सिर्फ वन क्षेत्र के लिए नुकसानदेह होगी, बल्कि इसमें कहीं न कहीं प्रधान मुख्य वन संरक्षक अशोक कुमार के व्यक्तिगत लाभ का पहलू भी छिपा हुआ प्रतीत होता है।
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1 रेंजर संभाल रहे 5 से 10 रेंज
वर्तमान परिस्थिति देखें तो राज्य में सिर्फ 20 के करीब रेंजर सक्रिय हैं, और इनमें भी कई रेंजर्स एक-साथ 5 से 10 रेंज की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। रेंजरों की कमी के कारण विभाग द्वारा प्रतिवर्ष संचालित 200 करोड़ से अधिक की योजनाओं की निगरानी भी प्रभावित होती है। इनमें पौधरोपण से लेकर निर्माण कार्य तक शामिल हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि जब रेंजरों को अतिरिक्त प्रभार दिया जाता है तो इससे वन विभाग के कार्यों पर नकारात्मक असर पड़ता है और माफिया को अधिक सक्रिय होने का मौका मिलता है। कई बार अख़बारों में यह मामला सुर्खियों में रहा है कि गलत तरीके से जंगलों की कटाई की जा रही है।
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ऐसे में जरूरी है कि वन विभाग जल्द से जल्द रेंजरों की कमी को दूर करे, न कि एक रेंजर को एक से अधिक क्षेत्रों की जिम्मेदारी देकर कार्यक्षमता पर दबाव बढ़ाया जाए। अगर वर्तमान हालात में सुधार नहीं किया गया, तो संभव है कि भविष्य में जंगलों को होने वाले नुकसान की भरपाई करना मुश्किल हो जाए।







