Ranchi : आज प्रसारित ‘मन की बात’ पर प्रतिक्रिया देते हुए मीडिया चेयरमैन सतीश पौल मुंजनी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम अब सिर्फ एक राजनीतिक विज्ञापन बन चुका है। देश संकटों से घिरा है, और प्रधानमंत्री हर महीने खुद की तारीफ़ का बुलेटिन सुनाने बैठ जाते हैं।
किसानों के नाम पर भाषण, पर MSP पर एक शब्द नहीं- यह प्रधानमंत्री नहीं, प्रचार मंत्री हैं! प्रधानमंत्री आज भी किसानों की वास्तविक समस्याओं से भागते नज़र आए। सच्चाई यह है: किसान कर्ज़ में डूबे मैं
खेती महंगी हो गई, फसल के दाम गिर गई।
आगे उन्होंने कहा कि सरकार ने MSP की गारंटी का वादा तक भूल गयी। देश अब प्रधानमंत्री का “रेडियो प्रपंच” नहीं सुनना चाहता। सवालों का जवाब चाहता है। खिलाड़ियों की जीत को ढाल मत बनाइए-सुविधाएँ दें, फोटो खिंचवाने नहीं जाएं!
प्रधानमंत्री खिलाड़ियों की मेहनत का श्रेय खुद ले लेते हैं
खिलाड़ियों को प्रशिक्षण सुविधा आर्थिक सुरक्षा देने में सरकार लगातार फैल रही है। राज्य में स्टेडियम अधूरे पड़े हैं, कोच की कमी है और खिलाड़ियों को नौकरी तक नहीं मिल रही है। प्रधानमंत्री खेलों की जीत का श्रेय लेने से पहले खिलाड़ियों के समस्याओं का समाधान करना चाहिए।
प्रधानमंत्री खिलाड़ियों की मेहनत का श्रेय खुद ले लेते हैं, खेल बजट घटाया, सुविधाएँ अधूरी, नौकरी और सुरक्षा शून्य। प्रधानमंत्री की खेल नीति बस यही है:
खिलाड़ी जीतें → फोटो खिंचवाएं → भाषण दें → काम शून्य।
आगे उन्होंने कहा कि INS माहे की बात कर देशभक्ति का ठेका मत लीजिए-युवाओं को 4 साल का कॉन्ट्रैक्ट देकर सेना का भविष्य खतरे में डाला है। नौसेना का आधुनिकीकरण सेना का काम है, प्रधानमंत्री का नहीं। लेकिन अग्निपथ योजना ने लाखों युवाओं का भविष्य बर्बाद किया। सेना में नियमित भर्ती लगभग बंद, पेंशन सुरक्षा खत्म, देशभक्ति भाषण नहीं, नीति से साबित होती है।
‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा, पर छोटे व्यापारी बर्बाद प्रधानमंत्री कहते हैं लोकल खरीदो, लेकिन छोटे व्यापारियों का हाल: GST के जाल में बर्बाद, मनमानी टैक्स नोटिस, ई-कॉमर्स की लूट पर सरकार की चुप्पी,
“वोकल फॉर लोकल” सिर्फ एक चुनावी जुमला है-वास्तव में सरकार ने लोकल को खत्म कर दिया।
बेरोज़गार युवाओं से कह रहे हैं टूरिज्म बढ़ाओ! यह संवेदनहीनता नहीं तो क्या है? जब करोड़ों युवा रोज़गार की तलाश में भटक रहे हों, तो प्रधानमंत्री का संदेश है घूमने जाइए।
महँगाई का समाधान क्या है? बेरोज़गारी कैसे घटेगी?
देश पूछ रहा है: नौकरी कहाँ है? उद्योग बंद क्यों? रोजगार दर गिर क्यों रही? प्रधानमंत्री इन मुद्दों पर चुप हैं, क्योंकि विफलता छुपाई नहीं जा सकती। राज्यों का फंड रोककर, केंद्र सरकार संघीय ढांचे पर हमला कर रही—और प्रधानमंत्री नैतिकता की बात करते हैं!
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने आज एक शब्द भी नहीं कहा कि-विपक्षी राज्यों का बकाया पैसा क्यों रोका जा रहा है, योजनाएँ क्यों ठप की जा रही हैं, केंद्र–राज्य विवाद क्यों बढ़ रहा है। कारण स्पष्ट है-
यह सरकार राष्ट्रहित नहीं, बदले की राजनीति से चलती है।
जनता चाहती है जवाब लेकिन प्रधानमंत्री सिर्फ अपनी तारीफ बांच रहे हैं। आज की ‘मन की बात’ में प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया: महँगाई का समाधान क्या है? बेरोज़गारी कैसे घटेगी? किसानों का MSP कब मिलेगा? युवाओं की भर्ती क्यों रोकी? आर्थिक मंदी का इलाज क्या?
प्रधानमंत्री को जनता की बात सुननी चाहिए-न कि हर महीने अपनी ही ढपली बजाते हैं। प्रधानमंत्री की ‘मन की बात’ में न सच्चाई थी, न ईमानदारी, न देश की चिंता। यह सिर्फ एक व्यक्ति का आत्मप्रचार था। लेकिन देश अब जाग चुका है। जनता चाहती है-मन की बात नहीं, जवाब की बात!








