वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखा जाने वाला एक अत्यंत पावन व्रत है. यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है. इस दिन सुहागन महिलाएं वट (बड़) वृक्ष की पूजा करती हैं और व्रत रखकर सावित्री और सत्यवान की पवित्र कथा का श्रवण करती हैं.
व्रत की कथा और महत्व
वट सावित्री व्रत की शुरुआत प्राचीन काल से मानी जाती है. इसकी प्रमुख कथा महाभारत से जुड़ी हुई है, जिसमें पतिव्रता सावित्री अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस ले आती हैं. जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जा रहे थे, तब सावित्री ने उनका पीछा किया और अपनी बुद्धिमानी, समर्पण और धर्म से प्रसन्न कर यमराज से अपने पति सत्यवान के लिए जीवनदान मांग लिया था. तभी से यह व्रत पति की दीर्घायु के लिए विशेष माना जाता है.
व्रत करने की विधि
इस दिन महिलाएं प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं. वट वृक्ष की पूजा करके जल, रोली, मौली, फल, फूल, भीगा चना, पान आदि अर्पित किए जाते हैं. व्रक्ष की परिक्रमा करते हुए महिलाएं कच्चे धागे से वट वृक्ष को लपेटती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं. दिनभर उपवास रखा जाता है.
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क्या करें और क्या न करें
यह व्रत जितना फलदायी है, उतनी ही सावधानी से इसका पालन करना आवश्यक होता है. यदि व्रत के नियमों का उल्लंघन किया जाए तो व्रत का पुण्य कम हो सकता है या व्रत टूट भी सकता है.
क्या करें:
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके साफ वस्त्र पहनें.
- व्रत का संकल्प लें और पूरी श्रद्धा से पूजा करें.
- वट वृक्ष की परिक्रमा करें और सच्चे मन से प्रार्थना करें.
- सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करें या सुनें.
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क्या न करें:
- इस दिन झूठ बोलना, क्रोध करना या किसी से विवाद करना वर्जित है.
- व्रत के दौरान अनाज या तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए.
- किसी वृक्ष की टहनी तोड़ना या अपवित्र स्थान पर पूजा करना मना है.
वट सावित्री व्रत केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि यह नारी शक्ति के धैर्य, प्रेम और समर्पण की मिसाल भी है.









