Ranchi: झारखंड वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी इस रविवार, यानी 30 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। लेकिन रिटायरमेंट से ठीक पहले अपने पसंदीदा रेंजर्स को प्रभावशाली क्षेत्रों का अतिरिक्त प्रभार देने को लेकर नए विवाद में घिरते नजर आ रहे हैं। यह आरोप कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं झारखंड राब्ता हज कमेटी के अध्यक्ष हाजी मतलुब इमाम ने लगाया है। उनका इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि अधिकारी द्वारा नियमों को दरकिनार कर अंतिम समय में रेंजरो को अतिरिक्त लाभ दिए जा रहे हैं, जिससे कही ना कही वन विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे है।
Read more: GDP में जोरदार उछाल! जुलाई-सितंबर में 8.2% की ग्रोथ से भारतीय अर्थव्यवस्था चमकी
बात करते हुए हाजी मतलुब इमाम ने बताया कि विधानसभा के शीतकालीन सत्र को आधार बनाते हुए अधिकारी प्रधान मुख्य वन संरक्षक अशोक कुमार ने रविवार के दिन भी तेजी से आदेश जारी किए जा रहे हैं, ताकि लाभ शीघ्र हो सके। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकारी वर्तमान में दो सरकारी आवासों पर कब्जा किए हुए हैं, जो अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है। उन्होंने इसे विभाग में बढ़ते प्रभाव और पद के दुरुपयोग से जोड़ते हुए राज्य सरकार से मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।
इन रेंजरों को दिया गया अतिरिक्त प्रभार
सूत्रों के अनुसार वन विभाग द्वारा 10 नवंबर 2025 को पहला आदेश जारी किया गया था, जिसके अनुसार वर्तमान पदस्थापना के अलावा कई रेंजर्स को अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया। वहीं 27 नवंबर को दूसरे आदेश भी जारी किया गया, जिसमें कुल आठ रेंजर्स को अतिरिक्त जिम्मेदारियां दी गईं है। जानकारी के मुताबिक पहले सूची में प्रमोद कुमार, जो फिलहाल गढ़वा उत्तरी वन प्रमंडल में कार्यरत हैं, उन्हें इसी क्षेत्र के गढ़वा वन प्रक्षेत्र का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। इसी तरह मेदिनीनगर व्याघ परियोजना उत्तरी प्रमंडल में तैनात अजय कुमार टोप्पो को रंका पश्चिमी वन प्रक्षेत्र तथा कुटकू वन प्रक्षेत्र (गढ़वा दक्षिणी प्रमंडल) की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई। वहीं धनबाद शहरी वानिकी प्रक्षेत्र के प्रभारी राकेश कुमार सिंह को पतरातु वन प्रक्षेत्र और रामगढ़ वन प्रमंडल का भी प्रभार सौंप दिया गया। तो दूसरे आदेश में विजय सिंह जो फिलहाल कांके सामाजिक वानिकी प्रक्षेत्र में कार्यरत है, उन्हें लोहरदगा प्रक्षेत्र और रांची वानिकी प्रमण्डल का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। वैसे ही राजेश्वर पासवान जो फिलहाल कोलेबिरा वन प्रक्षेत्र और सिमडेगा वन प्रमण्डल में अपना कार्य निभा रहे है, उन्हें भी तमाड़ और खूंटी में अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। सूची में और नामों को देखे तो बिरसा लोहार, बटेश्वर पासवान, सुरेश राम, विनोद कुमार सिंह, सुरेंद्र सिंह और प्रमोद कुमार का नाम शामिल है। जिन्हें अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।
विभाग में 1200 पद रिक्त
वन विभाग में इस समय गार्ड और रेंजर के करीब 1200 पद रिक्त हैं, जबकि पूरे राज्य में सिर्फ लगभग 20 रेंजर ही सक्रिय हैं। ऐसे में एक ही अधिकारी को कई क्षेत्रों की जिम्मेदारी देने से कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब एक रेंजर को एक साथ 5 से 10 क्षेत्रों का प्रभार दिया जाता है, तो न केवल निगरानी कमजोर होती है, बल्कि वन क्षेत्र को माफिया गतिविधियों से भी अधिक खतरा उत्पन्न होता है। पिछले वर्षों में भी अवैध तरीके से जंगलों की कटाई व संसाधनों का दोहन कई बार मीडिया की सुर्खियां बनता रहा है, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हुआ। हाजी मतलुब इमाम ने यह भी कहा कि रेंजरों की कमी दूर करने की बजाय प्रभावशाली और पसंदीदा अधिकारियों को महत्वपूर्ण क्षेत्रों में तैनाती दी जा रही है। इससे वन क्षेत्र का नुकसान होगा। उनका आरोप है कि कुछ रेंजर्स को धनबाद जैसे संवेदनशील क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपे जाने के बाद भी उन्हें रांची और दुमका जैसे बड़े क्षेत्रों का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है, जिससे विभाग में दोहरी कार्यप्रणाली डुअल चैनल की स्थिति पैदा हो सकती है।
Read more: “अबुआ नहीं, ठगुआ सरकार-हेमंत सरकार के एक साल पूरे होने पर बीजेपी का आरोप
अपने उपर लगे आरोपों को सिरे से नकारा
जब इस मामले में प्रधान मुख्य वन संरक्षक अशोक कुमार से संपर्क किया गया तो उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को सिरे से नकार दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अतिरिक्त प्रभार सिर्फ विभागीय आवश्यकताओं और सरकार की निगरानी में दिया जा रहा है।
आपकों बता दें कि वन विभाग द्वारा हर वर्ष 200 करोड़ रुपये से अधिक की योजनाओं की निगरानी बाधित हो रही है, जिनमें वृक्षारोपण और निर्माण कार्य जैसी प्रमुख परियोजनाएं शामिल हैं। ऐसे में रेंजरों की नियुक्ति प्राथमिकता पर नहीं की गई, तो आने वाले समय में जंगलों को होने वाले नुकसान की भरपाई करना कठिन हो सकता है। मामले को लेकर हाजी मतलुब इमाम ने कार्रवाई की मांग करते हुए कहा है कि सेवानिवृत्ति से पहले पद और प्रभाव का उपयोग कर मनमानी तैनाती करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाई जानी चाहिए। फिलहाल अब देखना यह होगा कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है







