रांची: झारखंड की सियासी फिजाओं में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा का विषय बन चुका है घाटशिला विधानसभा उपचुनाव। चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है और अब वोटिंग में महज 30 दिन शेष हैं। लेकिन इसके बावजूद अभी तक ना भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और ना ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने अपने उम्मीदवारों के नाम की औपचारिक घोषणा की है। दोनों दलों की यह चुप्पी सियासी गलियारों में कई सवाल खड़े कर रही है।
झामुमो में स्थिती नहीं हो रही साफ
एक तरफ जहां भाजपा खेमे में बाबूलाल सोरेन का नाम लगभग तय माना जा रहा है, वहीं झामुमो में अब तक स्थिति साफ नहीं हो सकी है। पार्टी के भीतर गहरे मंथन और परिवारिक अंतर्कलह की वजह से उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया थम सी गई है। सूत्रों की मानें तो झामुमो के भीतर इस बार का सबसे बड़ा टकराव विक्टर सोरेन और सोमेश सोरेन के बीच है। यही अंतर्कलह अब खुले मंच पर आने लगी है। खासकर तब जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 6 अक्टूबर को सोरेन परिवार के एक सदस्य के पोस्ट को री-ट्विट कर दिया। देखने में यह एक साधारण री-ट्विट भले लगे, लेकिन झारखंड की राजनीति में इसके मायने गहरे हैं। माना जा रहा है कि इस पोस्ट के जरिए सीएम ने अप्रत्यक्ष रूप से विक्टर सोरेन को समर्थन का संकेत दिया है।
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सोमेश और विक्टर के बीच खींचतान
घाटशिला उपचुनाव को लेकर पहले ही यह खबर सामने आ चुकी थी कि सोमेश और विक्टर के बीच टिकट को लेकर खींचतान चल रही है। अब सीएम के इस कदम के बाद विक्टर की दावेदारी और मजबूत मानी जा रही है। सूत्रों के अनुसार, विक्टर को रामदास सोरेन के बाद क्षेत्र का सबसे भरोसेमंद कार्यकर्ता माना जाता है। वे 2014 से लगातार इलाके में सक्रिय हैं और संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने में उनकी अहम भूमिका रही है। रामदास सोरेन के दाहिने हाथ के रूप में भी विक्टर की पहचान रही है। इसके साथ ही एक दिलचस्प बात यह है कि सोमेश के एक भाई भी विक्टर के साथ खड़े हैं, जिससे झामुमो के अंदर समीकरण और भी दिलचस्प हो गए हैं। वहीं, सोमेश को लेकर पार्टी के भीतर कुछ असंतोष की स्थिति बताई जा रही है। कहा जा रहा है कि सोमेश के साथ कई ऐसे समर्थक देखे गए हैं जो घाटशिला के नहीं बल्कि बाहर के हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि बाहरी लोगों की यह मौजूदगी संगठन की स्थानीय छवि को नुकसान पहुंचा सकती है। इन सारी गतिविधियों की जानकारी खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंच रही है।
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गलत फैसले से दो हिस्सों में बंट सकता है वोट
झामुमो के भीतर इस समय दो गुट स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं, एक गुट जो सोमेश के पक्ष में है, जबकि दूसरा गुट विक्टर के समर्थन में मजबूती से खड़ा है। यही वजह है कि पार्टी आलाकमान अब तक किसी एक नाम पर मुहर नहीं लगा पा रहा है। अगर पार्टी गलत फैसला करती है, तो घाटशिला में झामुमो का वोट बैंक दो हिस्सों में बंट सकता है, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिल सकता है। भाजपा की रणनीति साफ है, वह झामुमो के इस अंतर्कलह का फायदा उठाकर इस पारंपरिक सीट पर सेंध लगाने की कोशिश में है। घाटशिला को झामुमो का गढ़ माना जाता है, इसलिए पार्टी चाहती है कि उपचुनाव में जीत के अंतर को और बड़ा किया जाए जैसा 2024 के विधानसभा चुनाव में किया गया था।
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जिसका पलड़ा भारी वो बनेगा उम्मीदवार
पार्टी सूत्रों के अनुसार, झामुमो की महत्वपूर्ण बैठक 15 अक्टूबर को बुलाई गई है। माना जा रहा है कि इसी बैठक में उम्मीदवार को लेकर अंतिम फैसला लिया जाएगा। हालांकि यह भी संभव है कि पार्टी इससे पहले ही नाम की घोषणा कर दे ताकि प्रचार में बढ़त हासिल की जा सके। फिलहाल झामुमो के भीतर जारी यह खींचतान घाटशिला की सियासत को और दिलचस्प बना रही है। सीएम के री-ट्विट के बाद विक्टर सोरेन की दावेदारी भी मजबूत स्थिति में है। अब देखना यह होगा कि झामुमो अंतिम निर्णय कब और किसके पक्ष में लेती है, विक्टर या सोमेश। लेकिन इतना तो तय है कि झारखंड की राजनीति में घाटशिला उपचुनाव सिर्फ एक सीट का नहीं, बल्कि झामुमो के भीतर की ताकत और नेतृत्व क्षमता की असली परीक्षा बन चुका है। अब जिस किसी का पलड़ा भारी होगा पार्टी उसे अपना उम्मीदवार बना सकती है।







