Kml Desk: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपनी स्थिति साफ कर दी है। पार्टी के महासचिव ने स्पष्ट कहा है कि अगर महागठबंधन ने झामुमो को लेकर जल्द फैसला नहीं किया, तो पार्टी अपना स्वतंत्र निर्णय लेगी। इस बयान के बाद बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। बता दें कि पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव में कुल 12 सीट पर लड़ना चाहती है और गठबंधन से कुल मिलाकर 12 सिटों की मांग की है। लेकिन देका जाए तो पूर्वी बिहार के पांच विधानसभा सीट ऐसे है जहां झामुमो जीत – हार बड़ा फैक्टर तय कर सकती है। इस खबर में हम मुख्य रूप से इन्ही पांच सीटों की चर्चा करेंगे कि आखिर वो कौन से सीट है जहां पार्टी जीत और हार के लिए मुख्य भुमिका निभा सकती है।
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पांच सीट जहां पार्टी निभा सकता है निर्णायक भूमिका
पूर्वी बिहार के पांच विधानसभा क्षेत्र — चकाई , बेलहर और कटोरिया , कहलगांव और मनिहारी ये ऐसे सीट हैं जहां झामुमो निर्णायक भूमिका निभा सकता है। इन क्षेत्रों में आदिवासी वोटरों की संख्या भी अच्छी है और झारखंड की राजनीति का सीधा प्रभाव यहां देखने को मिलता है। इस एक कारण यह है कि पूर्वी बिहार और झारखंड की सीमाएं आपस में जुड़ी हैं। राजमहल की पहाड़ियां दोनों राज्यों को जोड़ती हैं, जबकि इन इलाकों के लोगों का खान-पान, बोली, रहन-सहन और सांस्कृतिक जुड़ाव झारखंड से गहराई से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि हर चुनाव में झारखंड के राजनीतिक समीकरण इन सीटों पर असर डालते हैं।
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चकाई सीट: जो झामुमो का पुराना किला है
देखा जाए तो चकाई विधानसभा क्षेत्र झारखंड के देवघर और गिरिडीह जिलें से सटा है। यहां लगभग 8.4% आदिवासी मतदाता हैं, जो चुनावी परिणाम तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2010 में सुमित सिंह ने झामुमो के टिकट पर महज 188 वोटों से जीत दर्ज की थी। बाद में उन्होंने जदयू से जुड़कर 2020 में निर्दलीय चुनाव लड़ा और राजद उम्मीदवार को 581 वोटों से हराया था। झामुमो और जदयू के चुनाव चिह्न में समानता के कारण यहां आदिवासी वोटर अक्सर भ्रमित होते हैं, जिससे कई बार जदयू को अप्रत्यक्ष लाभ मिला है।
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कहलगांव: राजद और कांग्रेस के बीच झारखंड कनेक्शन
भागलपुर की कहलगांव सीट झारखंड के गोड्डा जिला से सटी है। गोड्डा के राजद विधायक और मंत्री संजय प्रसाद यादव अपने पुत्र रजनीश यादव को कहलगांव से राजद प्रत्याशी बनवाने की कोशिश में हैं। वहीं कांग्रेस से प्रवीण सिंह कुशवाहा टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। झारखंड में कांग्रेस की मंत्री दीपिका पांडे सिंह (महगामा विधायक) उनके करीबी मानी जाती हैं। तेजस्वी यादव पहले ही कहलगांव के गोराडीह में सभा कर चुके हैं, जिससे यह संकेत मिल रहा है कि महागठबंधन की रणनीति इस सीट पर लगभग तय मानी जा रही है। लेकिन झामुमो भी इस सीट पर चुनाव लड़ने की योजना में है।
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बेलहर और कटोरिया: झामुमो की पारंपरिक दावेदारी
बांका जिले की बेलहर और कटोरिया दोनों सीटों पर झामुमो ने हमेशा दावेदारी की है।2015 में बेलहर से राज किशोर प्रसाद झामुमो उम्मीदवार थे, जिन्होंने 10,408 वोट पाकर तीसरा स्थान हासिल किया था। तो वहीं कटोरिया से झामुमो ने 2015 और 2020 दोनों चुनावों में अंजला हांसदा को मैदान में उतारा था। हालांकि वे तीसरे स्थान पर रहीं, लेकिन पार्टी ने लगातार अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है।
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मनिहारी: झामुमो पिछली बार भी लड़ चुकी है चुनाव
कटिहार जिले की मनिहारी सीट पर भी झामुमो सक्रिय है। यहां भी पार्टी ने पिछली बार अपना उम्मीदवार उतारा था और इस बार फिर तैयारी में जुटी है। अगर महागठबंधन ने झामुमो को वांछित सीटें नहीं दीं, तो पार्टी ने संकेत दिया है कि वह निर्दलीय उम्मीदवार उतारने से पीछे नहीं हटेगी।
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अगर देखा जाए तो इस वक्त महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर गहन मंथन चल रहा है। तेजस्वी यादव लगातार कांग्रेस, राजद, VIP और झामुमो के शीर्ष नेताओं से बैठकें कर रहे हैं। झामुमो का रुख स्पष्ट है — सम्मानजनक हिस्सेदारी मिले, नहीं तो स्वतंत्र रास्ता। अब देखना यह होगा कि बिहार के राजनीतिक पटल पर झामुमो की यह रणनीति क्या नया समीकरण बनाती है, और क्या महागठबंधन उसे अपने साथ बनाए रख पाता है या नहीं












