Lifesyle: हेल्थ कॉन्शियस लोगों में बढ़ रही है इंटरमिटेंट फास्टिंग की लोकप्रियता.आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में फिट रहना हर किसी की प्राथमिकता बन गया है. जिम, डाइटिंग और योग के साथ अब लोग एक नए और स्मार्ट विकल्प की ओर बढ़ रहे हैं — इंटरमिटेंट फास्टिंग. यह न सिर्फ वजन घटाने में मदद कर रहा है, बल्कि शरीर को डिटॉक्स करने और मेटाबॉलिज्म को सुधारने में भी कारगर साबित हो रहा है.
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क्या है इंटरमिटेंट फास्टिंग?
इंटरमिटेंट फास्टिंग (IF) कोई परंपरागत डाइट नहीं है, बल्कि यह खाने और उपवास के समय को संतुलित करने की एक तकनीक है. इसमें लोग दिन में 16 घंटे उपवास करते हैं और केवल 8 घंटे के अंदर खाना खाते हैं. सबसे आम तरीका है 16:8 रूल, यानी 16 घंटे उपवास और 8 घंटे भोजन.
कुछ लोग इसे हफ्ते में दो बार 24 घंटे का उपवास रखकर भी अपनाते हैं, जिसे 5:2 डाइट कहते हैं.
वैज्ञानिक भी मानते हैं फायदेमंद
अमेरिका और यूरोप में हुई कई रिसर्च से यह बात सामने आई है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग शरीर में इंसुलिन लेवल को कंट्रोल करता है, जिससे मोटापा और डायबिटीज़ का खतरा कम होता है. साथ ही, यह पाचन तंत्र को आराम देता है और कोशिकाओं की मरम्मत प्रक्रिया (cell repair process) को तेज़ करता है.
डॉक्टरों के अनुसार, यह डाइट हार्ट हेल्थ, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल को भी बेहतर करती है, बशर्ते इसे सही तरीके से अपनाया जाए
संयमित डाइट और अनुशासन है ज़रूरी
इंटरमिटेंट फास्टिंग को अपनाने के साथ-साथ यह जरूरी है कि फास्टिंग के दौरान जंक फूड, अधिक मीठा या ऑयली खाना न खाया जाए. बहुत से लोग फास्टिंग विंडो में ओवरईटिंग कर लेते हैं, जिससे इसका फायदा नहीं मिल पाता.
इसलिए एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि फास्टिंग विंडो में हेल्दी फूड जैसे फल, सब्ज़ियाँ, प्रोटीन और पर्याप्त पानी लें.
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क्या यह सभी के लिए सही है?
हालांकि इंटरमिटेंट फास्टिंग अधिकतर लोगों के लिए फायदेमंद है, लेकिन डायबिटिक मरीज, प्रेगनेंट महिलाएं और अत्यधिक शारीरिक कार्य करने वाले लोगों को इसे डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं अपनाना चाहिए.












