National : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में स्पष्ट कर दिया कि राज्यपाल और राष्ट्रपति, दोनों के लिए विधानसभा से पास बिलों पर मंजूरी देने की कोई तय समय-सीमा नहीं लगाई जा सकती। कोर्ट ने कहा कि हालांकि वे “अनिश्चितकाल” तक फैसले को लटकाकर नहीं रख सकते और अगर बिना वजह लंबे समय तक देरी होती है तो सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।
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यह विवाद मूल रूप से तमिलनाडु में उठे तनाव से जुड़ा था, जहां राज्यपाल द्वारा कई बिलों को रोके जाने पर राज्य सरकार ने नाराजगी जताई थी। कोर्ट ने साफ कहा कि गवर्नर के पास केवल तीन संवैधानिक विकल्प हैं या तो बिल को मंजूरी दें, उसे विधानसभा को दोबारा विचार के लिए भेजें, या फिर राष्ट्रपति के पास भेजें। वीटो जैसी कोई पावर उनके पास नहीं होती।
पांच सदस्यीय पीठ ने आठ महीने की सुनवाई के बाद दिया निर्णय
संविधान पीठ ने यह भी माना कि “डीम्ड असेंट” यानी बिना बोले भी मंजूरी मान लेना जैसी व्यवस्था को न्यायपालिका अपने स्तर पर लागू नहीं कर सकती। राज्यपाल और राष्ट्रपति, दोनों, बिलों पर निर्णय लेते समय मंत्रिपरिषद की सलाह से बाध्य नहीं होते।
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मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अगुआई वाली पांच सदस्यीय पीठ ने आठ महीने की सुनवाई के बाद यह निर्णय दिया। इस मामले में केंद्र सरकार और कई विपक्षी राज्यों के बीच बहस लंबी चली, लेकिन कोर्ट ने अंत में संतुलन रखते हुए कहा कि राज्यपाल ‘रबर स्टैंप’ नहीं हैं, पर मनमानी भी नहीं कर सकते।












