Jharkhand: झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के कद्दावर नेता और घाटशिला विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक चुने गए रामदास सोरेन अब इस दुनिया में नहीं रहे। 62 वर्षीय रामदास सोरेन ने 15 अगस्त 2025 को दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में अंतिम सांस ली। स्वतंत्रता दिवस के दिन आई उनकी मौत की खबर ने पूरे झारखंड की राजनीति को झकझोर दिया।
ग्राम प्रधान से शुरू हुआ राजनीतिक सफर
राजनीतिक जीवन की शुरुआत ग्राम प्रधान के रूप में करने वाले रामदास सोरेन ने झारखंड आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। शिबू सोरेन, चंपाई सोरेन और अर्जुन मुंडा जैसे नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन किया। उनकी सक्रियता इतनी थी कि अलग राज्य आंदोलन के दौरान उनके नाम पर बॉडी वारंट तक जारी हुआ था।
2005 में बगावत और निर्दलीय चुनाव
रामदास सोरेन का राजनीतिक सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा। साल 2005 में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन के कारण जब घाटशिला सीट कांग्रेस के खाते में गई तो उन्होंने जिलाध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर निर्दलीय चुनाव लड़ा। 35 हजार से अधिक वोट पाकर उन्होंने सबको चौंका दिया।
तीन बार विधायक, दो बार मंत्री
- 2009: पहली बार झामुमो टिकट पर विधायक बने।
- 2014: भाजपा के लक्ष्मण टुडू से हार गए, लेकिन क्षेत्र में सक्रिय रहे।
- 2019: भाजपा से घाटशिला सीट छीन ली।
- 2024: तीसरी बार भारी मतों से विधायक चुने गए।
अगस्त 2024 में उन्हें जल संसाधन और उच्च शिक्षा मंत्री बनाया गया। बाद में मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें स्कूली शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई।
बीमारी और निधन
2 अगस्त 2025 को जमशेदपुर स्थित आवास पर वे बाथरूम में गिर गए और सिर में गंभीर चोट लगी। ब्लड क्लॉट बनने के बाद उन्हें एयरलिफ्ट कर दिल्ली ले जाया गया। लंबा इलाज चला लेकिन 15 अगस्त को उन्होंने अंतिम सांस ली।
जननेता की पहचान और परिवार
रामदास सोरेन को घाटशिला का जननेता कहा जाता था। वे हमेशा सादगी और संघर्ष की मिसाल बने रहे। उनके परिवार में पत्नी सूरजमनी सोरेन, तीन बेटे – सोमेन, रबिन और रूपेश तथा एक बेटी रेणुका हैं।
उनके निधन से घाटशिला समेत पूरे कोल्हान क्षेत्र में गहरा शोक है। झामुमो कार्यकर्ताओं का कहना है कि “रामदास सोरेन सिर्फ नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी और समाजसेवी भी थे।”








