Birsa Munda’s Death Anniversary: ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी विद्रोह की मशाल जलाने वाले भगवान बिरसा मुंडा का नाम आज सम्मान के साथ लिया जा रहा है, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उन्हें इतिहास के पन्नों में लगभग भुला दिया गया था. न तो स्कूली पाठ्यक्रम में उनका उल्लेख होता था, और न ही मुख्यधारा की मीडिया या इतिहास चर्चाओं में उन्हें स्थान मिलता था.
‘उलगुलान’ का योद्धा, जो बना ‘धरती आबा’
बिरसा मुंडा का जीवन सिर्फ एक विद्रोही का नहीं, बल्कि एक समाजसुधारक और आत्मगौरव के पुजारी का भी था. 19वीं सदी के अंत में उन्होंने “उलगुलान” (महाविद्रोह) की अगुवाई करते हुए आदिवासी समुदाय को अंग्रेजों के अन्याय, ज़मींदारी शोषण और धार्मिक दमन से लोहा लेने के लिए प्रेरित किया.
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फिर शुरू हुआ पहचान और सम्मान का सफर
हाल के वर्षों में भारत सरकार और राज्य सरकारों ने बिरसा मुंडा को वह पहचान दिलाने की कोशिश की है जिसके वे वास्तव में हकदार हैं. उन्हें सिर्फ एक क्षेत्रीय नायक से उठाकर राष्ट्र के आदिवासी प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है.
जनजातीय गौरव दिवस (Tribal Pride Day) की घोषणा:
15 नवंबर – बिरसा मुंडा की जयंती – को अब राष्ट्रीय स्तर पर जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह कदम उन्हें भारत के स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक चेतना के एक अहम स्तंभ के रूप में स्थापित करता है.
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राष्ट्रीय स्मारकों की स्थापना:
- ‘भगवान बिरसा मुंडा स्मारक’, रांची में बन रहा है जो एक भव्य संग्रहालय के रूप में उनकी यादों को संजोएगा.
- झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्यप्रदेश में उनकी प्रतिमाएं और संग्रहालयों का निर्माण किया जा रहा है.
शैक्षणिक संस्थानों और स्टेडियमों के नाम:
- बिरसा मुंडा यूनिवर्सिटी (झारखंड)
- बिरसा मुंडा एथलेटिक्स स्टेडियम (राउरकेला, ओडिशा) – जिसे हाल ही में हॉकी विश्व कप 2023 के लिए तैयार किया गया.
- कई सरकारी योजनाएं और छात्रवृत्तियाँ भी अब उनके नाम पर आरंभ की गई हैं.
आदिवासी अस्मिता का प्रतीक
बिरसा मुंडा आज सिर्फ एक ऐतिहासिक चरित्र नहीं हैं – वे आदिवासी अस्मिता, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक बन चुके हैं. उनके विचार, “जंगल, जमीन और जल” के अधिकारों की रक्षा, आज भी आदिवासी आंदोलनों का मूल आधार हैं.
युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा
आज की युवा पीढ़ी के लिए बिरसा मुंडा एक ऐसा नाम हैं, जो सिखाते हैं कि सीमित संसाधनों और दमन के बावजूद कोई भी व्यक्ति परिवर्तन का वाहक बन सकता है. उनके संघर्ष की कहानी अब स्कूलों, कॉलेजों, सरकारी अभियानों और डिजिटल मीडिया के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुँच रही है.








