रांची/घाटशिला: बिहार विधानसभा चुनाव के साथ-साथ झारखंड की घाटशिला विधानसभा में भी उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनाव आयोग के अनुसार, घाटशिला सीट पर 11 नवंबर को मतदान होगा और 14 नवंबर को परिणाम घोषित किए जाएंगे। लेकिन सबसे हैरानी की बात यह है कि अब तक झारखंड मुक्ति मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही दलों ने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा नहीं की है। इससे इलाके का सियासी तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है।
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आम तौर पर झामुमो की परंपरा रही है कि पार्टी उपचुनाव से पहले ही अपने उम्मीदवार का नाम तय कर देती है। पिछली बार डुमरी उपचुनाव में दिवंगत मंत्री जगन्नाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को टिकट देना हो या पूर्व मंत्री हाजी हुसैन के निधन के बाद उनके पुत्र हफिजुल को मंत्री पद देना झामुमो ने हमेशा तेजी दिखाई है। लेकिन इस बार घाटशिला में पार्टी असमंजस की स्थिती में है और यह पहली बार हुआ है जब पार्टी ने किसी का नाम पहले नहीं रखा है, ऐसे में चर्चा है कि उम्मीदवार जो भी जीत झामुमो की हुई तो पार्टी से जीते हुए उम्मीदवार को मंत्री पद नहीं दिया जाएगा। फिलहाल घाटशिला में स्थिती सामान्य रूप से शांत है, लेकिन अंदरखाने मंथन का दौर भी लगातार जारी है।
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अंदरूनी खींचतान बनी देरी की वजह
मंत्री रामदास सोरेन के निधन के बाद खाली हुई घाटशिला विधासभा सीट पर दावेदारी साफ तौर पर उनके बेटे सोमेश सोरेन की दिख रही थी। पार्टी के भीतर यह लगभग तय माना जा रहा था कि सोमेश को उपचुनाव में टिकट दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, बीते 4 अक्टूबर को उन्हें मंत्री पद की शपथ दिलाए जाने की पूरी तैयारी भी कर ली गई थी। राजभवन में तैयारी किए जाने की चर्ची थी, लेकिन ठीक उसके एक दिन पहले सोरेन परिवार में अंतरकलह उभर आई। हालांकि यह अंतरकलह शुरूआती दिनों से ही थी लेकिन शपथ ग्रहन के कुछ दिन पहले ही परिवार के भीतर असहमति की स्थिति ने पूरी रणनीति बदल दी और शपथ कार्यक्रम टल गया।
सोरेन परिवार में दो खेमे
रामदास सोरेन के तीन बेटे सोमेश, रोबिन और रुपेश हैं। पिता के निधन के बाद सोमेश ने सक्रिय होकर अपनी दावेदारी मजबूत की। दूसरी ओर, विक्टर सोरेन, जो कि रामदास सोरेन के भतीजे हैं और 2014 से झामुमो में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, उन्होंने भी इस सीट पर दावेदारी ठोक दी। सूत्रों के मुताबिक, विक्टर पार्टी संगठन में लंबे समय से सक्रिय हैं और घाटशिला क्षेत्र में रामदास सोरेन के साथ मिलकर काम करते रहे हैं। यही वजह है कि वे सोमेश की दावेदारी पर आपत्ति जता रहे हैं। जानकारी यह भी है कि 4 अक्टूबर को जब झामुमो के तीन मंत्री धालभूगढ़ पहुंचे थे और सोमेश को लेकर एक बैठक चल रही थी, तभी विक्टर मीटिंग के बीच से उठकर चले गए। उसी पल से पार्टी के अंदर यह संकेत मिलने लगे कि झामुमो इस बार नाम घोषित करने में जल्दबाजी नहीं करेगी।
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झामुमो की रणनीति – वेट एंड वॉच
सूत्रों का कहना है कि इस बार पार्टी वेट एंड वॉच की नीति अपना रही है। यानी पहले भाजपा के उम्मीदवार का ऐलान देखा जाएगा, उसके बाद झामुमो अपने प्रत्याशी का नाम सामने रखेगी। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव के दौरान भी पूर्वी सिंहभूम में गठबंधन के प्रत्याशी का नाम अंतिम समय में तय किया गया था। अब झामुमो घाटशिला में भी वही रणनीति अपनाती दिख रही है।
झामुमो में तीन संभावित नाम – सोमेश, विक्टर और सूरजमनी
अंदरखाने चर्चा यह भी है कि अगर सोमेश और विक्टर के बीच मतभेद सुलझ नहीं पाता है, तो पार्टी कोई तीसरा विकल्प चुन सकती है। सूत्रों के अनुसार, झामुमो रामदास सोरेन की पत्नी सूरजमनी सोरेन को उम्मीदवार बनाने पर विचार कर सकती है। ऐसा होने पर परिवार के भीतर का विवाद भी शांत हो जाएगा और पार्टी भावनात्मक आधार पर वोट हासिल करने में भी सफल रहेगी। राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो घाटशिला विधानसभा सीट झामुमो की परंपरागत सीट मानी जाती है। यहां से लगातार तीन बार रामदास सोरेन ने जीत दर्ज की थी और मंत्री पद संभाला था। लेकिन इस बार पार्टी के अंदर चल रही खींचतान ने समीकरण बदल दिए हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति है। कुछ पुराने नेता खुले तौर पर सोमेश की उम्मीदवारी से नाखुश बताए जा रहे हैं, जबकि विक्टर का संगठन भी खुल कर तो नहीं लेकिन अंदर ही अंदर नाखुश है।
कार्यकर्ता कर रहे हैं जमीनी तैयारी
दूसरी ओर पार्टी भले ही अभी रणनीतिक चुप्पी साधे हुए है, लेकिन मैदान में दोनों गुट सक्रिय हैं। सोमेश और विक्टर दोनों साथ साथ तो नहीं लेकिन अलग-अलग गांव-गांव जाकर लोगों से संपर्क साध रहे हैं। संगठन को मजबूत करने और जनता से जुड़ने की कोशिश में जुटे हैं। विक्टर जहां खुद को जमीनी कार्यकर्ता के रूप में पेश कर रहे हैं, वहीं सोमेश अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का दावा और पिता के सपनो को साकार करने की बात कर रहे हैं। देखा जाए तो झामुमो इस बार दोहरी चुनौती से जूझ रही है। पहली, परिवार के भीतर चल रहा विवाद, और दूसरी, संगठनात्मक एकता को बनाए रखना। अगर पार्टी जल्द किसी सर्वमान्य चेहरे पर सहमति नहीं बनाती है तो यह उपचुनाव उसकी परंपरागत जीत की राह में मुश्किलें खड़ी कर सकता है।
अवसर की तलाश में भाजपा
देखा जाए तो घाटशिला की राजनीति फिलहाल पूरी तरह गर्म है। एक तरफ जहां झामुमो अपने भीतर चल रहे मतभेदों से जूझ रही है, वहीं भाजपा अवसर की तलाश में है। चुनाव आयोग ने तारीखें तय कर दी हैं, लेकिन उम्मीदवारों के नामों को लेकर अब भी रहस्य बना हुआ है। पार्टी के भीतर चल रहे मंथन के बीच अब सबकी नजरें 13 अक्टूबर को रांची में झामुमो की होने वाली मीटिंग में टिकी हुई है। क्योंकि मीटिंग के बाद झामुमो आखिर किस नाम पर मुहर लगाती है सोमेश, विक्टर या सूरजमनी? अगर झामुमो जल्द फैसला नहीं लेती, तो इस बार घाटशिला का परंपरागत किला भी खतरे में पड़ सकता है। लेकिन इस बात से भी किनारा नहीं काटा जा सकता है कि सहानुभूती वोट झामुमो के साथ है। फिलहाल फिजाओं में सियासत का पारा चढ़ चुका है, अब बस एक घोषणा बाकी है, जो घाटशिला की राजनीति की तस्वीर तय करेगी।







