रांची : झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र 1 अगस्त से शुरू होने वाला है जो कि 7 अगस्त तक चलेगा। सात दिनों की कुल अवधि वाले इस सत्र में केवल पांच कार्य दिवस निर्धारित किए गए हैं, क्योंकि 2 और 3 अगस्त को शनिवार और रविवार की छुट्टी रहेगी। अब यह सत्र सियासी आरोप-प्रत्यारोप और राजनीतिक बयानबाज़ी का केंद्र बन गया है।
read more: Kargil Vijay Diwas: रांची के लाल और झारखंड के जांबाज़, कारगिल युद्ध के वीर सपूतों को सलाम
विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश कर रही सरकार
विपक्ष का आरोप है कि सत्र की छोटी अवधि सरकार की राजनीतिक चाल है, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता अविनेश कुमार ने कहा कि विधानसभा में जनता से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए पर्याप्त समय मिलना चाहिए, लेकिन सरकार इसे जानबूझकर सीमित कर रही है ताकि विपक्ष की आवाज़ दबाई जा सके।
read more: बिहार में पत्रकारों को नीतीश सरकार का बड़ा तोहफा, पेंशन अब ₹6,000 की जगह ₹15,000 मिलेगी
कम समय में भी कि जा सकती है सार्थक चर्चा – झामुमो
वहीं, सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। झामुमो प्रवक्ता मनोज पांडेय ने पलटवार करते हुए कहा कि जब विपक्ष सत्ता में थी, तब भी इतने ही कम दिनों का सत्र होता था। उन्होंने कहा कि असली सवाल सत्र की अवधि नहीं, बल्कि इस दौरान सदन की कार्यप्रणाली और मुद्दों की गुणवत्ता है। अगर विपक्ष केवल हंगामे के इरादे से आएगा तो समय हमेशा कम लगेगा। लेकिन अगर मुद्दों के साथ आए तो कम समय में भी सार्थक चर्चा हो सकती है।
नीयत साफ हो तो पांच दिन काफी है- कांग्रेस
कांग्रेस के मीडिया प्रभारी और महासचिव राकेश सिन्हा ने भी विपक्ष पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भले ही सत्र का समय कम हो, लेकिन अगर नीयत साफ हो और उद्देश्य स्पष्ट हो तो पांच दिन भी काफी हो सकते हैं। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह केवल प्रचार पाने के लिए सदन की कार्यवाही में व्यवधान डालती है, जो लोकतंत्र के लिए सही नहीं है।
read more: PM मोदी Maldives के 60वें स्वतंत्रता दिवस पर हुए शामिल; भारत-मालदीव के बीच 8 समझौते
राज्य की राजनीतिक माहौल गर्म
बहरहाल झारखंड विधानसभा का यह सत्र ऐसे समय में हो रहा है जब राज्य में राजनीतिक माहौल गर्म है। और लगातार भ्रष्टाचार, महिला सुरक्षा, अवैध खनन, लचर स्वस्थ व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए जा रहे है। ऐसे में अब देखना यह होगा कि सीमित समय में यह सत्र जनता के हितों पर कितनी गंभीर चर्चा को आगे बढ़ा पाता है।








