Kml desk: केंद्र की मोदी सरकार ने जातीय जनगणना को हरी झंडी दे दी है। यह निर्णय केंद्रीय कैबिनेट की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी (CCPA) की बैठक में लिया गया, जिसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी।
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उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार अब जनगणना में जाति आधारित डेटा भी इकट्ठा करेगी। अश्विनी वैष्णव शुरुआत में शिलॉन्ग से सिलचर तक हाई-स्पीड कॉरिडोर हाईवे परियोजना और गन्ना किसानों के लिए उचित मूल्य की जानकारी दे रहे थे, जिसके बाद उन्होंने जाति जनगणना को लेकर यह बड़ा ऐलान किया।
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राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी अहम है यह फैसला
ध्यान रहे कि सरकार का यह फैसला राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम माना जा रहा है। ऐसा इस लिए क्योंकि विपक्ष खासकर कांग्रेस और इंडिया गठबंधन लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे थे। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने इसे अपनी प्रमुख मांगों में से एक बताया था। हाल ही में संपन्न 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इंडिया गठबंधन ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया था और वादा किया था कि सत्ता में आने पर जाति जनगणना कराएंगे। साथ ही कई पार्टियों ने इसे प्रमुखता से उठाया था।
बिहार में तेज हुई राजनीतिक बयानबाजी
वहीं आपकों बता दें कि बिहार में इस फैसले की राजनीतिक गूंज तेज हो गई है, जहां सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार पहला राज्य है जिसने जातिगत जनगणना कराई थी। अब केंद्र के फैसले को राज्य की सियासत से भी जोड़कर देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पीएम मोदी को धन्यवाद दिया है, वहीं राजद सुप्रीमो लालू यादव ने तंज कसते हुए कहा कि जातिगत जनगणना की पहल 1996-97 में जनता दल की सरकार ने की थी, जब वे राष्ट्रीय अध्यक्ष थे।
झारखंड में झामुमो ने किया स्वागत
जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने इसे विपक्ष की नैतिक जीत बताया है। पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि मोदी सरकार जनदबाव में आकर यह फैसला लेने को मजबूर हुई है। हालांकि उन्होंने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह कदम 10 साल पहले उठाया जाना चाहिए था। बता दें कि जनगणना कि प्रक्रिया इस साल सितंबर से शुरू हो सकती है और इसके पूरा होने में लगभग एक साल का समय लग सकता है।