भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्म ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था. उनका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ, जो अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, परशुराम का नाम पहले “राम” था, लेकिन जब उन्हें भगवान शिव द्वारा “परशु” (फरसा) नामक अस्त्र प्राप्त हुआ, तब से उनका नाम परशुराम पड़ा. उन्होंने अपने पिता से शस्त्र विद्या सीखी और कई दिव्य अस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया. परशुराम को चिरंजीवी माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे अमर हैं. यह मान्यता है कि वे कलियुग के अंत तक धरती पर रहेंगे. उनकी पूजा नहीं होती क्योंकि उनका स्वरूप उग्र माना जाता है; लोग केवल उनका आवाहन करते हैं.
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परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त
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परशुराम जयंती इस साल 29 अप्रैल को मनाई जाएगी. यह दिन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, जो कि वैसाख महीने में आता है. यह दिन भगवान परशुराम के जन्मदिन के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष, परशुराम जयंती का शुभ मुहूर्त 29 अप्रैल को शाम 5:32 बजे से शुरू होगा और 30 अप्रैल को दोपहर 2:11 बजे तक चलेगा.
परशुराम जयंती के दिन पूजा की विधि
- अहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें (स्नान करते समय जल में गंगा जल मिलाना ना भूलें)
- तांबे को लोटे से सूर्य देव को अर्घ्य दें.
- परशुराम के चित्र पर पीले फूल, तुलसी और फल अर्पित करें.
- विष्णु सहस्त्रनाम और परशुराम के मंत्रों का जाप करें
- इस दिन व्रत रखना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है.
- गरीबों को भोजन कराएं और दान देना ना भूलें.
भगवान परशुराम से जीवन पाठ
भगवान परशुराम से हमें कई महत्वपूर्ण पाठ सीखने को मिलते है. पहला माता-पिता का सम्मान करना और हर हाल में उनके आज्ञाओं का पालन किया. दूसरा, हम उनसे सीख सकते है, न्याय सर्वोपरि, परशुराम ने न्याय के लिए लड़ाई लड़ी और अन्याय के खिलाफ खड़े हुए. उन्होंने सहस्त्रार्जुन जैसे अत्याचारी राजाओं का नाश किया क्योंकि वे अन्याय के प्रतीक थे. यह सिखाता है कि हमें अपने सिद्धांतों पर अडिग रहना चाहिए.