Jagannath Yatra 2025: पुरी की पावन धरती हर साल एक ऐसे पर्व की साक्षी बनती है, जो न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि आस्था और चमत्कार का जीवंत उदाहरण भी बन जाता है. यह पर्व है — भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा जी, विशाल रथों में विराजमान होकर अपने भक्तों के बीच आते हैं. आइए जानते है एक ऐसे शख्स के बारे में जिनकी रथ यात्रा ने जिंदगी बदल दी.
एक अधूरी आस… जीवन भर की इच्छा
रामचरण दास, एक 78 वर्षीय वृद्ध, जो ओडिशा के एक छोटे से गांव में रहते थे. बचपन से ही भगवान जगन्नाथ के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा थी. हर साल वे रथयात्रा के दर्शन की कल्पना करते, परंतु आर्थिक तंगी, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ और बाद में बढ़ती उम्र और शरीर की अक्षमता ने उन्हें रोक दिया. रामचरण एक पैर से विकलांग थे. डाक्टरों ने साफ कहा था कि उन्हें लंबी यात्रा या भीड़भाड़ से बचना चाहिए. लेकिन उनकी आत्मा हर वर्ष पुरी की ओर खिंचती थी.
मन में विश्वास, हृदय में भगवान
2025 की रथयात्रा आने वाली थी. रामचरण ने इस बार संकल्प लिया कि चाहे जो हो, वे रथयात्रा में शामिल होंगे. बेटे-बहू ने मना किया, परंतु उन्होंने भगवान जगन्नाथ से वादा कर लिया था – “हे प्रभु, इस बार आपके दर्शन करके ही लौटूँगा, चाहे शरीर साथ दे या न दे.”
वह एक साधारण बैसाखी के सहारे, ट्रेन और फिर लोकल बसों से पुरी पहुंचे. शरीर थका हुआ था, पैर काँप रहे थे, पर हृदय आनंद से भर उठा जब उन्होंने पहली बार अपने नेत्रों से नीलाचल के प्रभु को रथ पर विराजमान देखा.
चमत्कार या कृपा?
जब रथ खींचने की बारी आई, रामचरण बस दर्शक बने रहना चाहते थे. लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ, जिसे वहाँ मौजूद हजारों लोगों ने अपनी आँखों से देखा और दिल से महसूस किया.
रामचरण जैसे ही रथ के पास पहुँचे, एक युवक ने उन्हें सहारा देकर रस्सी तक पहुँचाया. उन्होंने जैसे ही रथ की रस्सी को छुआ — उनके चेहरे पर प्रकाश छा गया. शरीर में कंपन हुआ और आश्चर्यजनक रूप से, उनके पैर स्वतः चलने लगे. वह स्वयं चलकर रथ खींचने लगे.
लोगों ने यह दृश्य देखा और “जय जगन्नाथ!” का जयघोष गूंज उठा. रामचरण की आँखों से आँसू बह रहे थे – शायद यह उनके जीवन का सबसे पवित्र क्षण था.
रथयात्रा का महत्व
रथयात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि जब आस्था अडिग होती है, तो भगवान स्वयं अपने भक्त के रास्ते बनाते हैं. भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा न केवल एक मंदिर से दूसरे स्थान की यात्रा करते हैं, वे भक्तों के हृदय में स्थान बनाते हैं.
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रामचरण की कहानी एक उदाहरण है कि सच्ची भक्ति और दृढ़ संकल्प के सामने कोई भी शारीरिक बाधा टिक नहीं सकती. भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा हर साल लाखों लोगों को यही सिखाती है — आस्था हो तो चमत्कार होते हैं.










