Ranchi News: रांची स्थित ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मंदिर में आज परंपरानुसार देव स्नान यात्रा उत्सव का आयोजन किया गया. जहां भगवान को भोग अर्पण करने के बाद मंदिर के पुजारियों ने प्रारंभिक पूजा-अर्चना के बाद मंदिर के पट बंद कर दिए. जिसके बाद भगवान जगन्नाथ, भ्राता बलभद्र और अनुजा सुभद्रा को गर्भगृह से शोभायात्रा के रूप में स्नान मंडप में लाया जायेगा गया. जहां, सबसे पहले बलभद्र स्वामी का स्नान किया गया. जिसके बाद बहन सुभद्रा को नहाया गया और आखिर में महाप्रभु जगन्नाथ को स्नान कराया गया.
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108 दीपों से की गई भव्य आरती
बता दें, तीनों विग्रहों का स्नान 51-51 मिट्टी के कलशों में संग्रहित औषधीय जल से कराया गया. इसके बाद महाप्रभु को भाई बलभद्र और बहने सुभद्रा के साथ भोग लगाया गया. इस पूरे पवित्र कार्य को पुजारी रामेश्वर पाढ़ी, सरयू नाथ मिश्रा, कौस्तुभधर नाथ मिश्रा और श्रीराम मोहंती ने संपन्न कराया. इसके बाद 108 दीपों से उनकी भव्य आरती की गई. इस अवसर पर प्रभु के भक्तों ने भी गंगाजल से उनका जलाभिषेक किया.
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15 दिनों के लिए अनासार काल में गए महाप्रभु
बता दें स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा 15 दिनों के लिए अनासार काल में चले गए, जिससे भक्त 15 दिन तक महाप्रभु के दर्शन नहीं कर सकेंगे. मालूम हो, इस दौरान देवी-देवताओं का जड़ी-बूटियों से उपचार किया जाता है, जिसे एक धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है. वहीं, इस दौरान कलाकार महाप्रभु को नया स्वरूप प्रदान करते हैं.
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26 जून को ‘नेत्रोत्सव’
धुर्वा जगन्नाथ मंदिर में 27 जून को पूरे हर्षोल्लास के साथ भव्य रथयात्रा निकाली जाएगी. लेकिन, इससे एक दिन पहले यानी 26 जून को नेत्रोत्सव का आयोजन किया जाएगा. जिसको ‘नवयौवन दर्शन’ के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान जगन्नाथ और उनकी स्वजनों के स्वस्थ होने का प्रतीक है. इस दिन विग्रहों को नए वस्त्र और आभूषण से सजाया जाता है, जो उनके नए यौवन और ऊर्जा का प्रतीक है. अनासार काल के बाद, जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का प्रथम सार्वजनिक दर्शन ‘नवयौवन दर्शन’ कहलाता है, जिसका अर्थ है देवताओं का नया और युवा रूप. यह अनुष्ठान जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के शाश्वत चक्र का प्रतिनिधित्व करता है. यह रथ यात्रा से पहले का प्रमुख आध्यात्मिक कार्यक्रम होता है.
27 जून को निकलेगी भव्य रथ यात्रा
नेत्रोत्सव के बाद, 27 जून को भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकलेगी, जो धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है.