Kml desk: यादव जी दूध बेचेंगे… उद्योग लगाना उनके वश में नहीं है…! इसलिये मुखिया जी यादव को छोड़कर नगर की सरकार के साथ सपत्निक बिलायत निकल गये…! कूटनीति के महाभारत में एकलव्य अब अर्जुन बन चुका है…! अब बकार फाड़कर यादव जी रोते रहिए…! क्योंकि मुखिया जी के तेवरों में आपकी तरफ कोई तवज्जो नहीं है…! यादव जी नाम के उद्योग मंत्री हैं और काम करने का जिम्मा खुद मुखिया जी उठा लिये हैं…! फफकते हुए यादव जी बोल उठे- का करें भाई… कोन्हों काम नहीं है…! कहने को विभाग का मंत्री हैं… लेकिन इज्जत तहखाना में चला गया है…! का हुआ यादव जी? सहसा एक राजनीतिक मित्र ने पूछ लिया…! यादव जी बोले- का बताएं भी, विदेश नहीं ले गये इस बात का दुख नहीं है.. दुख तो इस बात का है कि अडाणी से भी चुपेचाप मुखिया जी फरिया लिये …! कोलकाता का मोमेंटम में हमको जाना था… लेकिन वहां भी अपने चल दिये… हमको पूछे भी तक नहीं…। आफिस में भी बचा कुचा इज्जत नीलाम हो रहा है…! दिनभर कुर्सी पर बैठे बैठे कमर में दर्द हो गया है, कोई कस्टमर नहीं आ रहा है…! बड़का अधिकारी मुखिया जी से निर्देश ले लेता है, और छोटका को काम सौंप देता है…। अब तुम ही बताओ हम काहे का मंत्री हैं….? यह समझ नहीं आ रहा है कि हमकोे जब लतियाने का ही इरादा था तो राज्य के उद्योग की जिम्मेदारी काहे दे दी..! मुखिया जी ही उद्योग की जिम्मेदारी और उठा लेते….! अडाणी से भी अकेले अकेले निपट लिये… अब विदेश भी अपने चले गये…! अब हम स्रोता और वक्ता फोकट में बना फिर रहे हैं और बता रहे हैं कि राज्य में उद्योग की अपार संभावनाएं हैं…! सहेलियां (सहयोगी मंत्री) बिरहन के सिरहाने बैठ सांत्वना दे रही हैं… और समझा रही हैं कि उदास नहीं होना है नहीं तो पड़ोसी कमजोरी समझ लेगा और बोल रही हैं कि काहे होत अधीर… पिय आवेंगे खुशी लावेंगे…!
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