रांची। राजधानी रांची सहित पूरे राज्य में प्रकृति पर्व सरहुल का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दौरान पाहन ने मंगलवार को सरना स्थल पर प्रकृति, पूर्वज और देवी देवताओं की पूजा की। सरना स्थल पर दो घड़े में रखे पानी का आकलन कर हातमा सरना समिति के पुरोहित (पाहन) जगलाल पाहन ने बताया कि इस साल सामान्य से कम बारिश होने की संभावना है।
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इससे पहले पुजारी जगलाल पाहन ने सरना स्थल पर विधि विधान के साथ देवी-देवताओं, प्रकृति और पूर्वजों की पूजा की। इस दौरान सफेद यानी चरका मुर्गे की बलि भगवान सिंगबोंगा को, रंगवा मुर्गे की बलि जल देवता यानी इकिर बोंगा को, रंगली मुर्गे की बलि पूर्वजों को और काले मुर्गे की बलि अनिष्ट करने वाली आत्माओं की शांति के लिए दी गई। पूजा के बाद घड़े में रखे पानी से पाहन को स्नान कराया गया। थाली में उनके पैर धोए गए। इसके बाद पाहन ने बारिश की भविष्यवाणी की।
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पुजारी जगलाल पाहन ने बताया कि मौसम को देखते हुए कृषि कार्य शुरू करें। मौसम की भविष्यवाणी की परंपरा आदिकाल से चलती आ रही है। जब साइंस डेवलप नहीं हुआ था, उस समय आदिवासियों के पूर्वज प्रकृति के तौर तरीकों का आंकलन कर अनुमान लगाते थे कि मानसून कैसा रहेगा। यह परंपरा सदियों से चलती आ रही है।
पाहन ने बताया कि सरहुल पर्व में तीन दिन का आयोजन होता है, जिसमें पहले दिन जनजातीय समाज के लोग उपवास रखते हैं। सुबह खेत एवं जलाशयों में जाकर केकड़ा एवं मछली पकड़ते हैं। पूजा के बाद रसोई में उसे सुरक्षित रख देते हैं। ऐसी मान्यता है कि फसल बोने के समय केकड़ा को गोबर पानी से धोया जाता है। इसके बाद उसी गोबर पानी से फसलों के बीज को भीगा कर खेतों में डाला जाता है।
पाहन ने बताया कि पूर्वजों की ऐसी मान्यता है कि केकड़ा के 8-10 पैरों की तरह फसल में भी ढेर सारी जड़े निकलेंगी और बालियां भी खूब होंगी। अच्छी फसल होगी। उन्होंने बताया कि पहले धरती पर पानी ही पानी था। केकड़े ने मिट्टी बनाई और धरती वर्तमान स्वरूप में आया। उन्होंने कहा कि कितना भी अकाल पड़ जाए, जहां केकड़ा होगा वहां संकेत है कि पानी जरूर होगा।