रांची। बाहा बोंगा के बाद आदिवासी समाज की सबसे बड़ी और पवित्र पूजा गोट बोंगा यानी सोहराय पर्व 12 नवंबर से शुरू होगा। यह पर्व पांच दिनों तक चलेगा। कार्तिक अमावस्या के दिन सामूहिक रूप से विभिन्न गांव के नायके बाबा (पुजारी) द्वारा अपने-अपने गांव में गोट बोंगा कर इस पर्व की शुरुआत की जाती है । गोट बोंगा में मुर्गे की बलि चढ़ाई जाती है। इसके बाद गांव के लोगों द्वारा प्रसाद के रूप में सोड़े ग्रहण किया जाता है।
जमशेदपुर शहर के ग्रामीण इलाकों करनडीह, सारजमदा, तालसा, शंकरपुर, रानीडीह, मातलाडीह, काचा, परसुडीह, पोंडेहासा, छोलागोड़ा आदि ग्रामीण इलाकों में अभी से ही सोहराय पर्व की तैयारियां चल रही है। गांव के पुरुष बाजारों से आवश्यक सामग्री खरीदने में लगे हुए हैं, वहीं महिलाएं अपने-अपने घरों की दीवारों में लिपाई पुताई व रंगाई के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की कलाकृति बनाने में व्यस्त है। सुंदर और आकर्षक कलाकृति बनाने में आदिवासी समाज की महिलाओं को महारत हासिल है जिनमें उनकी छोटी-छोटी बच्चियों भी उनका हाथ बटांते दिख जाते हैं।
सारजमदा पुड़सी पिंडा के मुड़ूद माझी बाबा लेदेम मुर्मू ने कहा कि फसल की अच्छी पैदावार होने के बाद सभी किसान सोहराय पर्व के माध्यम से अपने-अपने गाय और बैलों की पूजा करते हैं लेकिन इस बार इंद्र देवता की कृपा से बारिश का खतरा बना हुआ है। महिला तथा पुरुष सभी साफ सुथरे और नए पारंपरिक परिधान में रहते हैं और पांच दिनों तक चलने वाला यह सोहराय पर्व आपसी भाईचारा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर हड़िया (पेय पदार्थ) का भी सेवन किया जाता है। कई कई गांवों में पर्व के चौथे दिनों से बैल नाच की प्रतियोगिता भी रखी जाती है।