जमशेदपुर। श्रीलेदर्स की संस्थापक माँ ‘किरणमयी डे’ की 100वीं जयंती को नारी सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। इसको लेकर श्रीलेदर्स पूरे साल विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए नारी को सशक्त करने का कोशिश करेगा।
उक्त घोषणा ‘किरणमयी डे’ की जयंती पर श्रीलेदर्स के पार्टनर सह समाजसेवी शेखर डे ने बिष्टुपुर के रोड स्थित शोरूम में आयोजित श्रद्धांजलि सभा कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने कहा, यह वर्ष श्रीलेदर्स अपना 70वां स्थापना दिवस भी मना रहा और संस्थापक ‘किरणमयी डे’ की शताब्दी जयंती भी है इसलिए सालों भर महिलाओं और बेटियों को सशक्त करने का कार्यक्रम होगा। जमशेदपुर को टाटा स्टील और श्रीलेदर्स से पहचाना जाता है, इसलिए समाज के उत्थान के लिए हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
शेखर डे ने आगे कहा, स्वामी विवेकानंद कहते थे कि समाज के विकास में नारी और पुरुष दोनों का अहम भूमिका होती है। उसी सोच के साथ श्रीलेदर्स परिवार अपने स्थापना दिन से आगे बढ़ा रहा है और बढ़ाता रहेगा। श्री शेखर डे ने कहा नारी सशक्तिकरण कार्यक्रम के दौरान शहरवासियों के अच्छे सुझाव को कार्यक्रम में शामिल किया जायेगा। नारी सशक्तिकरण कार्यक्रम श्रीलेदर्स देश भर में अपने पहुंच शहरों में आयोजित करेगा।
इससे पूर्व श्रद्धांजली सभा का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित और ‘किरणमयी डे’ के तस्वीर पर पुष्प अर्पित कर किया गया। वहीं उपस्थित महिलाओं के संग शेखर डे ने शताब्दी जन्म दिन केक काट कर नारी सशक्तिकरण कार्यक्रम का आगाज किया। इस अवसर उपस्थित अतिथियों ने ‘किरणमयी डे’ के जीवनी पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर श्रीलेदर्स के संस्थापक सह स्वतंत्रता सेनानी ‘सुरेश डे’ और ‘किरणमयी डे’ के साथ रहने वाले 90 वर्षीय भावेश चंद्र देब ने उनके जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उन्हें दृढ़ता, साहस, त्याग का प्रतीक बताया।
इस अवसर पर झरना कर, अल्पना भट्टाचार्जी, हारो गौरी महतो, बिमल चक्रवर्ती, मीरा शर्मा के अलावा श्रीलेदर्स परिवार के कर्मचारी और शहर के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे
दृढ़ता, साहस, त्याग का प्रतीक था ‘किरणमयी डे’ का जीवन
सौम्य चेहरा, सामान्य कद पर हौसलों और विचारों से मजबूत और व्यक्तित्व में काफी ऊंचाई, ऐसा ही था माँ यानि ‘किरणमयी डे’ का सामान्य परिचय। शिक्षा बहुत नहीं थी उनकी, पर उनकी सोच और योजनाएँ इतने व्यवहारिक थे कि अच्छी खासी डिग्रियाँ धारी व्यक्ति भी सोचने पर मजबूर हो जाएँ। विवाह के बाद पति के सपनों को पूरा करने और गृहस्थ जीवन का निर्वाह करने में पति के साथ जो सफल भागीदारी उन्होंने निभाई यह अपने आप में एक मिसाल है। वो महिला थीं पर अबला नहीं थी। उन्होंने अपने स्वामी और बच्चों को सिर्फ सहयोग ही नहीं किया बल्कि जरूरत पड़ने पर सफल मार्गदर्शन भी किया।