इस्लामाबाद: तेल के अकूत भंडार से लैस सऊदी अरब ने दशकों तक मुस्लिम देशों में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए पाकिस्तान से लेकर मिस्र तक को अरबों डॉलर की राशि बिना किसी खास शर्त के दी। अब सऊदी अरब ने ऐलान किया है कि वह अपनी नीति में क्रांतिकारी बदलाव कर रहा है। सऊदी अरब मिस्र को अपना रणनीतिक सहयोगी मानता था और अरबों डॉलर की सहायता अब तक दी है। अब मिस्र और पाकिस्तान दोनों ही बेहद गंभीर आर्थिक संकट में घिर गए हैं लेकिन सऊदी अरब दोनों ही कंगाल देशों से दूरी बना रहा है। सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान लगातार अब कड़ी शर्तें लगा रहे हैं और वह सब्सिडी को खत्म करने तथा सरकारी कंपनियों को प्राइवेट हाथों में देने की मांग कर रहे हैं। सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश सऊदी अरब साल 2022 में 28 अरब डॉलर के बजट सरप्लस में था और इसकी वजह यह थी कि यूक्रेन युद्ध के बाद तेल की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी हुई। इस कमाई के बाद भी सऊदी अरब मिस्र, पाकिस्तान और लेबनान जैसे कर्ज मांगने वाले देशों के साथ सख्ती बरत रहा है।
यूएई की राह पर ले जा रहे प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान
सऊदी अरब के वित्त मंत्री मोहम्मद अल जदान ने जनवरी में दावोस में कहा था, ‘पहले हम सीधे सहायता देते थे और पैसा जमा करते थे जिसमें कोई शर्त नहीं होती थी। हम अब इसे बदल रहे हैं। इस बदलाव के बाद जहां सऊदी और मिस्र के विशेषज्ञों में जुबानी जंग शुरू हो गई। मिस्र सऊदी अरब और यूएई के पैसे पर बहुत ज्यादा निर्भर है। इसके बाद दोनों देशों के अधिकारियों ने मामले को सुलझाने की कोशिश की लेकिन इसमें बदलाव नहीं होने जा रहा है।