पलामू। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग भारत सरकार की सदस्य आशा लकड़ा पलामू दौरे पर पहुंची। उन्होंने आदिवासियों के विकास को लेकर किए जा रहे कार्यों के सिलसिले में मेदिनीनगर में बैठक आयोजित की थी लेकिन इस बैठक में पलामू के उपायुक्त शशि रंजन, पुलिस अधीक्षक रिष्मा रमेशन और वन प्रमंडल पदाधिकारी शामिल नहीं हुए। ऐसे में आयोग की सदस्य आशा लकड़ा ने इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अधिकारों का हनन मानते हुए तीनों को समन जारी किया और 20 सितंबर को जवाब देने का निर्देश दिया है।
आयोग की सदस्य ने कहा कि बैठक को लेकर एमएचए से लेटर राज्य के मुख्य सचिव को भेजा गया था। वहां से पत्र पलामू आया था। मंगलवार को दूसरे हाथ में बैठक होनी थी लेकिन बिना किसी पूर्व सूचना के डीसी, एसपी और डीएफओ ने बैठक में शामिल होना मुनासिब नहीं समझे, जिससे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का समय बर्बाद हुआ। अधिकारों का हनन हुआ। प्रोटोकॉल का ख्याल नहीं रखा गया। इस कारण एक्शन लिया गया है।
आशा लकड़ा ने कहा कि पलामू जिले में भी आदिवासियों के विकास को लेकर योजनाएं संचालित होती हैं। इन योजनाओं से अनुसूचित जनजाति का कितना उत्थान हुआ और उसकी वर्तमान स्थिति क्या है। निर्देशों का कितना अनुपालन किया जा रहा है। इस सिलसिले में जानकारी लेने और दिशा-निर्देश देने के लिए बैठक की जानी थी। उन्होंने कहा कि मेदिनीनगर में स्थित अनुसूचित जनजाति छात्रावास की स्थिति काफी जर्जर है। यहां रहने वाले अनुसूचित जनजाति के छात्र-छात्राओं को पीने का पानी तक नसीब नहीं हो पाता है। सोने के लिए बेड नहीं मिलता है
। इन छात्रावासों का जायजा लेना था लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अनुसूचित जनजाति आयोग इसे बड़ी लापरवाही मानती है। अनुसूचित जनजाति आयोग आदिवासियों की संरक्षण सहित अन्य मामलों में सक्रियता दिखा रहा है लेकिन प्रशासनिक महकमा इसके लिए लापरवाही बरत रहा है। ऐसे में आदिवासियों का विकास कैसे हो सकता है? डीसी, एसपी और डीएफओ को जवाब देना होगा।