खूंटी। एक समय था जब परिवार का भरण-पोषण की जिम्मेवारी घर के मर्दों की ही थी। महिलाओं का काम सिर्फ घर की दहलीज में रहकर घरेलू काम करना था, लेकिन अब महिलाएं हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं, चाहे बात कृषि की हो, मछली पालन हो अथवा पशुपालन हो।
महिलाएं स्वयं स्वीकार करती हैं कि गांव-गांव में महिला स्वयं सहायता समूहों के गठन के बाद महिलाओं की जीवन शैली में काफी परिवर्तन आया है। जेएसएलपीएस, जिला प्रशासन, स्वयंसेवी संस्था प्रदान, लीड़स, टाटा सिनी ट्रस्ट जैसे संगठनों के प्रयास से गांवों की महिलाओं में सकारात्मक बदलाव आ रहा है। ऐसी ही एक प्रगतिशील महिला किसान हैं तोरपा प्रखंड के जागू गांव की प्रतिमा तिर्की। प्रतिमा तिर्की अपने गांव की रानी महिला मंडल से जुड़ी हुई है।
प्रतिमा बताती है कि उनका परिवार पहले से ही धान, गोड़ा, मड़ुवा, उड़द जैसे परपंरागत खेती करता रहा है, लेकिन इससे परिवार का न तो भरण-पोषण हो पा रहा था और न ही बच्चों की अच्छे स्कूलों में पढ़ाई हो पा रही थी। बाद में प्रतिमा ने सब्जी के खेती में हाथ बंटाने का निर्णय लिया और उसने पहली बार अपने खेत में परवल(पटल) की खेती की। इससे उसे कोई खास आमदनी नहीं हुुई। महिला मंडल से जुड़ने के पहले भी वह खेती करती थी, पर कम जानकारी होने के कारण मेहनत के अनुसार मुनाफा नहीं हो पाता था। बाद में वह महिला समूह रानी महिला मडल से जुड़ गई।
महिला मंडल की मदद से मिले उन्नत और ऑर्गेनिक खेती के प्रशिक्षण से उसने कृषि की तकनीक में परिवर्तन किया। इससे उत्पादन में वृद्धि होने लगी और आमदनी भी बढ़ने लगी। इससे उसकी पहचान सफल किसान के रूप में होने लगी। समूह बैठक में प्रतिमा को कृषि सखी से झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रोमोशन सोसाइटी(जेएसएलपीएएस) द्वारा संचालित इंटीग्रेटेड फार्मिंग क्लस्टर(आइएफसी) योजना अंतर्गत पटल की खेती के बारे में जानकारी मिली। उसके बाद प्रतिमा भी पटल की खेती करने के लिए प्रेरित हुई। प्रतिमा के लिए परवल की नर्सरी की व्यवस्था आइएफसी योजना के तहत की गयी, जिसमें उसने परवल के एक सौ पौधे खेत में लगाये। परवल की खेती से उसे अच्छा उत्पादन प्राप्त हुआ और मुनाफा भी दुगना हो गया।
महज 60 रुपये प्रति किलो की दर से प्रतिमा ने 150 किलो परवल बेचकर अब तक दस हजार रुपये से अधिक की आमदनी प्राप्त कर चुकी है। प्रतिमा बताती है कि पटल की खेती इस क्षेत्र में होगी कि नहीं, इस आशंका के बीच उसने सिर्फ एक सौ पौधे ही लगाये थे। इससे हुई आमदनी को देखकर एक से दो हजार पौधे लगाने का वह विचार कर रही है। उसने बताया कि परवल की खेती को देखकर कर दूसरी महिलाएं भी अब इस क्षेत्र में कदम रख रही हैं। अब सिर्फ जगू गांव में 30 परिवार परवल की खेती करने लगी हैं।