उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश के हाथरस में 121 मौतों के बाद किसी भी राजनेता ने बाबा सूरजपाल के खिलाफ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं दिखाई है। फिर वो चाहें सत्ता पक्ष के बड़े नेता हों या विपक्ष के। सत्ता पक्ष के नेताओं ने जांच और कार्रवाई की बात की तो विपक्ष के नेताओं ने इस हादसे के लिए सरकार और प्रशासन पर सवाल खड़े किए, लेकिन बाबा पर चुप्पी साधी रखी। ऐसा देश में पहली बार है कि जब इतना बड़ा हादसा होने के बाद भी किसी राजनेता ने बाबा के खिलाफ एक शब्द या कार्रवाई की बात कही हो। क्योंकि यह हादसा होता ही नहीं, अगर बाबा वहां पर सत्संग नहीं करता और न लोग वहां पर जाते।
देश में ऐसा पहली बार है कि बाबा के पक्ष में सरकार से विपक्ष ढाल बनकर खड़ा है। अगर पर बाबाओं पर कार्रवाई की बात करें तो गुरमीत राम रहीम बाबा,बाबा रामपाल, आशाराम और उनके बेटे नारायण साईं को भी जेल जाना पड़ा। लेकिन जो सबसे बड़ी बात है कि इन बाबाओं पर कार्रवाई बीजेपी शासनकाल में ही हुई, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि बाबा सूरजपाल जिसको भोले बाबा के नाम से भी लोग जानते हैं, वो कैसे पक्ष-विपक्ष दोनों पर भारी पड़ रहा है। भोले बाबा पर यौन शोषण समेत कुल 6 मामले पहले से दर्ज हैं। ऐसे में पुलिस को एक्शन लेने के लिए बाबा के खिलाफ इतना काफी है, लेकिन अब 121 मौतों के बाद भी उत्तर सरकार और विपक्ष के लिए बाबा निर्दोष है। सभी इस घटना को लेकर केवल खानापूर्ति कर रहे हैं, लेकिन बाबा पर कार्रवाई की बात कोई नहीं कर रहा।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी बस यही चाहते हैं कि पीड़ित लोगों का इलाज हो जाए और उन्हें मुआवजा मिल जाए। जाहिर है कि विपक्ष कोई आवाज नहीं उठा रहा है इसलिए सरकार की भी मौज है। उत्तर प्रदेश सरकार ने एफआईआर में भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ सूरजपाल जाटव का नाम शामिल ही नहीं किया। विपक्ष भी जानबूझकर इस मुद्दे को नजरअंदाज ही कर रहा है।
हालांकि, इसमें कोई मतभेद नहीं है कि 121 लोगों की मौत के पीछे हादसा ही सबसे बड़ा कारण है। राजनेताओं का भी यह तर्क है कि हादसा था इसलिए बाबा दोषी नहीं है। तब तो फिर उपहार सिनेमा अग्रिकांड में उनके मालिकों का भी दोष नहीं था। क्योंकि आग लगना भी एक हादसा था। सिनेमा की देखरेख करने वाले कर्मचारियों और मैनेजर की गिरफ्तारी होनी चाहिए थी। आखिर मैनेजर ही सब देखभाल करता था। मालिक कभी रोजमर्रा के काम में शामिल नहीं होता। इस तर्क के आधार पर तो अंसल बंधुओं ने अपनी जिंदगी के कई साल बेकार ही जेल में गंवा दिए। असल में यह पहली बार है कि इतना बड़ा हादसा होने के बाद मुख्यकर्ता बाबा को दूर-दूर तक दोषी नहीं ठहराया जा रहा है। इसके आगे पक्ष-विपक्ष की क्या मजबूरी है, इसको जनता भी भलीभांति जानती है।
सवाल उठता है कि भोले बाबा को क्या पता नहीं था कि इतनी ज्यादा भीड़ एकत्रित होगी। मान लेते हैं कि नहीं पता। क्या यह अंदाजा न लगा पाना गुनाह नहीं है? यह भी मान लेते हैं कि बाबा को इतनी भीड़ का अंदाजा नहीं लगा सके? लेकिन क्या 80 हजार लोगों की भीड़ के लिए बाबा ने अनुमति ली थी, लेकिन इतने लोगों की भी व्यवस्था नहीं की गई थी। इस भीषण गर्मी में अगर 80 हजार लोग भी इकट्ठा होते हैं तो उसके लिए पांच एंबुलेंस और पांच डॉक्टरों की व्यवस्था तो करनी ही चाहिए थी। पिछले साल ही बाबा बागेश्वर के दरबार में पहुंचे तमाम भक्तों को गर्मी से बेहोश होते हुए देखा गया था, जबकि इस बार गर्मी अपने चरम पर थी। इसके बावजूद लापरवाही बरती गई। पांडाल में कहीं भी एसी और कूलर नहीं दिखाई दे रहे हैं। आयोजकों की ओर से पर्याप्त पुलिस की व्यवस्था नहीं की गई। प्रशासन अगर पर्याप्त पुलिस भेजने से इनकार करता है तो ऐसे निजी समारोहों के लिए पुलिस को लीगल तरीके से भुगतान करके भी फोर्स बुलाने की व्यवस्था है।
ऐसे में आइए जानते हैं नेताओं के गैरजिम्मेदारान बयान-
राहुल गांधी शुक्रवार को हाथरस पहुंचे। वो पहले हाथरस और फिर अलीगढ़ गए। कांग्रेस नेता ने भगदड़ में मारे गए लोगों के परिवार से मुलाकात की। उन्होंने दुख व्यक्त किया और कहा कि बहुत परिवारों को नुकसान हुआ है। काफी लोगों की मृत्यु हुई है, प्रशासन की कमी तो है और गलतियां हुई हैं। राहुल गांधी ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से निवदेन किया कि पीड़ितों को मुआवजा सही मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से विनती करता हूं कि दिल खोलकर मुआवजा दें, लेकिन राहुल गांधी के मुंह से नारायण हरि सरकार उर्फ भोले बाबा के खिलाफ एक शब्द नहीं निकला। उनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? यूपी सरकार उन्हें क्यों बचा रही है? कांग्रेस नेता राहुल गांधी इन सब मुद्दों पर एक शब्द भी नहीं बोले।
उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के नेता अभी तक हाथरस नहीं पहुंचे हैं, जबकि पीड़ितों में अधिकतर इन दोनों ही पार्टियों के कोर वोटर्स हैं। यही नहीं विपक्ष के नेताओं के ऐसे बयान आ रहे जिससे जाहिर होता है कि बाबा को क्लीनचिट दी जा रही हो। समाजवादी पार्टी के नेता प्रो रामगोपल यादव ने कहा कि हादसे तो होते रहते हैं। एक्सीडेंट सब जगह होता रहता है। कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है जब भीड़ ज्यादा हो गई। सरकार को ऐसे नियम बनाने चाहिए कि इस तरह के कार्यक्रम हों तो कितनी भीड़ हो, जगह है कि नहीं है, आने जाने की व्यवस्था सही है कि नहीं है.डॉक्टरों की व्यवस्था है कि नहीं। सारी चीजों के लिए एसओपी जारी करना चाहिए।
सपा चीफ अखिलेश यादव भी योगी सरकार पर ही ठीकरा फोड़ते हुए कहते हैं कि ये सारी ज़िम्मेदारी प्रशासन की बनती है। उन्होंने इतने लोगों को रोका क्यों नहीं और अगर इतने लोग आ रहे थे तो इंतजाम क्यों नहीं किए गए। सरकार की वजह से जानें गई है। सरकार की वजह से एंबुलेंस नहीं मिली, ऑक्सीजन नहीं मिल पाई, पर बाबा की गिरफ्तारी के बारे में पूछने पर अखिलेश यादव तंज कसते हैं। कौन से बाबा की बात कर रहे हैं, यूपी में 2 बाबा हैं। उनका इशारा दूसरे बाबा के रूप में योगी आदित्यनाथ के रूप में है। हालांकि सार्वजनिक रूप से अखिलेश यादव पिछले साल इटावा में बाबा के सत्संग में शामिल हुए थे, तब उन्होंने नारायण हरि साकार को बड़ा संत बताया था। यही हाल बसपा चीफ मायावती और दलितों के उभरते नेता चंद्रशेखर भी बाबा के मामले में एक जैसा स्टैंड रखते हैं। राजनैतिक पार्टियां मुआवजे की राजनीति से आगे बढ़ने की मूड में नहीं हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, कुछ लोगों की आदत होती है कि वह दुखद और दर्दनाक घटनाओं में राजनीति ढूंढते हैं। ऐसे लोगों की फितरत होती है…चोरी भी और सीनाजोरी भी। हर व्यक्ति जानता है कि सज्जन की फोटो किनके साथ में है। उनके राजनीतिक संबंध किनके साथ जुड़े हुए हैं। राजनीतिक लोगों की मानें तो यहां सीएम योगी अपरोक्ष रूप से सपा चीफ अखिलेश यादव का नाम ले रहे हैं। मालूम हो कि साल 2023 में अखिलेश ने अपने ट्वीटर हैंडल पर भोले बाबा के दरबार में अपने पहुंचने की तस्वीरें शेयर की थीं।
लेकिन यूपी पुलिस यह बताने को तैयार नहीं कि सूरज पाल से अब तक पुलिस का संपर्क हुआ भी है या नहीं.जिस तरह यूपी पुलिस मैनपुरी में सूरज पाल की हवेली की सुरक्षा में तैनात है, उससे ये आशंका बढ़ती जा रही है कि सूरज पाल इसी हवेली में छिपा हुआ हो सकता है। सूरजपाल के तमाम आश्रमों में से सिर्फ मैनपुरी में ही जबरदस्त सुरक्षा है। मैनपुरी में ही एसपी सिटी आधी रात को एसओजी के साथ आधे घंटे तक आश्रम में पहुंचते हैं। मैनपुरी के ही आश्रम में खुद को सूरज पाल का वकील बता रहे शख्स भी मिलने पहुंच जाते हैं, लेकिन न तो पुलिस सूरज पाल को लेकर किसी तरह की कार्रवाई करती है औऱ न ही सूरज पाल के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सियासत किसी तरह के सवाल खड़े करती है।
दलित-ओबीसी वोट खिसकने का डर?
बाबा सूरज पाल के अनुयायियों में ज्यादातर दलित, पिछड़े, महिलाएं और गरीब तबके के लोग हैं। यह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली हर जगह बड़ी तादाद में मौजूद हैं। और इस वोट बैंक पर सूरज पाल का प्रभाव होने का अंदेशा हर दल को है, क्योंकि सूरज पाल के बड़े प्रवचनों सत्संगों में ढाई-तीन लाख तक की भीड़ जुट जाती है, इसीलिए कोई भी दल या नेता सूरज पाल के खिलाफ खुलकर कार्रवाई की बात नहीं कर पा रहा। कासगंज जिले के रहने वाले बाबा दलित जाटव बिरादरी के हैं। बता दें, उत्तर प्रदेश में इस जाति के 11 फीसदी मतदाता हैं। पश्चिमी यूपी के 9 जिले के लाखों लोग उनके समर्थक हैं। उनके सत्संग में जाते रहते हैं।