डोमचांच (कोडरमा)। सब-सत् का दिव्य मंत्र फूंकने वाले महा संत श्री परमहंस बाबा का 64वां समाधि पर्व डोमचांच में 22 अक्टूबर से शुरू होगा। इसी दिन समाधि पूजन, हवन, महाआरती, भजन संध्या आदि कार्यक्रम किया जाएगा। वहीं 23 अक्टूबर को समाधि पर चादरपोशी, प्रसाद वितरण समेत विविध कार्यक्रम होंगे। 24 अक्टूबर को इस महापर्व की समाप्ति महाप्रसाद खिचड़ी और खीर वितरण के साथ होगी।
इस समाधि पर्व को मनाने के लिए कोडरमा, गिरीडीह, बोकारो, भागलपुर, नवादा, मुम्बई, कोलकाता, हजारीबाग, चतरा, धनबाद, बिहार शरीफ आदि जगहों से आते हैं और श्री परमहंस बाबा की समाधि पर माथा टेककर मन्नत मांगते हैं। समाधि पर्व को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली गयी है। श्री परमहंस बाबा के बारे में समाधि सेवक व शिक्षाविद उमानाथेन्द्र गुरु ने बताया कि परमहंस बाबा का जन्म गिरीडीह के गोंदलीटांड़ में 1870 में एक मध्यम वर्ग परिवार में हुआ था। जब बाबा पांच वर्ष के थे, तब उन्हें माता द्वारा बीज के रुप में ज्ञान प्राप्त हुआ था। महासंत श्री लंगटा बाबा ने नौ वर्ष की आयु में इनके इस ज्ञान को और विकसित किया।
परमहंस बाबा सात वर्षों तक पूरे भारत का भ्रमण करते रहे, भ्रमण करते-करते 1916 में डोमचांच आये। बाबा बच्चों के साथ मगन के साथ खेलते थे। बाल-भाव को परमेश्वर भाव मानते थे। बाबा हमेशा लोगों को कहा करते थे कि पानी व ज्ञान को छान लेना चाहिए। वे कभी किसी से भोजन, कपड़ा, पैसा व वस्त्र वगैरह कुछ भी नहीं मांगते थे। उनका कहना था कि मनुष्य अगर फकीर हो जाये तो किसी का सहारा न लें। उनका मानना था कि आत्म तत्व का अनुभव हो जाने पर न तो भूख लगती है और न ही प्यास। सेवा भाव व समता भाव उनके व्यक्तित्व का दूसरा महत्वपूर्ण पहलु था। बाबा की महासमाधि 1961 ई. में परमहमस बाबा धाम कालीमंडा में हुई। तब से उनका समाधि पर्व हर वर्ष मनाया जाता है।