बेगूसराय। राज्यसभा सांसद प्रो. राकेश सिन्हा ने कहा है कि बिहार सरकार भ्रष्टाचार की फैक्ट्री चला रही है। यहां ब्यूरोक्रेट, पॉलीटिशियन और कांट्रेक्टर के बीच अनहेल्दी एलांयस के कारण दियारा शब्द अभिशाप बना हुआ है। लोग पलायन करने को मजबूर हैं, लेकिन सार्थक पहल नहीं हो रही है।
अपने गृह जिला बेगूसराय के प्रवास पर आए प्रो. राकेश सिन्हा ने गुरुवार की सुबह कहा कि दियारा की समस्या दो सौ वर्षों से है। ब्रिटिश राज में भी सर्वे हुआ, आजादी के बाद भी दियारा का सर्वे किया गया। लेकिन किसान और दियारा वासियों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। हर साल बाढ़ आती है, नदी अपना रास्ता बदलती है, लोगों का खेत-घर नदी में विलीन हो जाता है।
उन्होंने कहा कि दियारा में एक किसान को अपने जीवन काल में कम से कम तीन बार अपना घर बदलना पड़ता है या बनाना पड़ता है। यह दुरुह स्थिति बिहार के अधिकांश जिलों में है। गंगा, सोन, महानंदा, गंडक, कोसी के कटाव की समस्या का स्थाई समाधान नहीं हो पा रहा है। इसका समाधान नहीं निकलने का कारण यहां के अधिकारियों, राजनीतिक और ठेकेदारों की मिलीभगत है।
फ्लड फाइटिंग के नाम पर हर वर्ष सरकार सैकड़ों करोड़ रुपया देती है। लेकिन उसमें से 90 प्रतिशत से अधिक अधिकारी, राजनीतिज्ञ और ठेकेदार आपस में बांटते हैं। यहां निहित स्वार्थ का एक वर्ग विकसित किया गया है, जिसने दियारा को अपने कमाई का अड्डा बना लिया है। स्थाई समाधान निकालने के लिए रिंग बांध बनाना होगा। नहर निकाली जाए, जल को डाइवर्ट करके जरूरत वाले जिलों में ले जाया जाए।
नरेन्द्र मोदी ने प्रयास किया तो नर्मदा का जल 450 किलोमीटर दूर कच्छ पहुंच गया। बिहार में कुछ किलोमीटर नदी का रास्ता और जल का रूट बदलकर क्यों नहीं ले जाया जा सकता है। रिंग बांध बनाकर समाधान क्यों नहीं किया जा सकता है। दियारा के साथ ही निचली जमीन वाले हिस्से में जलजमाव की बड़ी समस्या है। चौड़ के खेत में पांच-छह महीने पानी जमा रहता है।
किसान एक से अधिक फसल नहीं ले पाते हैं। सिर्फ बेगूसराय में ही 40 हजार हेक्टेयर से अधिक ऐसी जमीन है। मैंने सदन में दियारा और जलजमाव का मुद्दा उठाया तो स्पष्ट हुआ कि यह राज्य का विषय है। केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा है कि इसके लिए बिहार की राज्य सरकार जो भी वित्तीय और तकनीकी सहायता मांगेगी, दिया जाएगा।
लेकिन बिहार की सरकार भ्रष्टाचार की इस फैक्ट्री को बंद करना नहीं चाहती है। कई राज्यों में किसान सड़क पर उतर आते हैं तो राज्य सरकार उनकी समस्या का समाधान करने के लिए तत्पर होती है। बिहार के किसान बेचारे हैं, वह सड़क पर नहीं उतरना चाहते हैं। जिसके कारण कई पीढ़ी से किसानों की हालत खराब है। उनके पास खेत है, सपरिवार परिश्रम करते हैं, पूंजी भी लगाते हैं, लेकिन खेत का अनाज घर नहीं आ पाता है।
उन्हें पता भी नहीं रहता है कि खेत अगले साल रहेगा या गंगा, सोन, महानंदा, गंडक, कोसी में समा जाएगा। ऐसी स्थिति में संवाद का प्रयास किया गया, लेकिन संवाद का रास्ता बंद हो चुका है। अब संघर्ष ही विकल्प है, संघर्ष करके सरकार को इसके लिए बाध्य करना पड़ेगा। बाढ़ के समय नेताओं का पर्यटन होता है। लेकिन फ्लड फाइटिंग की व्यवस्था पर कोई सवाल नहीं करता है। वे सॉफ्ट तरीके से बोलते हैं।
पिछले वर्ष मटिहानी में एक जगह फ्लड फाइटिंग के लिए दस करोड़ रुपये दिए गए, लेकिन दस लाख भी खर्च नहीं हुआ। भवानंदपुर में तीन करोड़ दिया गया, लेकिन तीन लाख भी खर्च नहीं किया गया। इतना बड़ा भ्रष्टाचार सिर्फ ठेकेदार नहीं कर सकता है। वह सब में बंटवारा करता है, छूटभऐ नेता को मुंह बंद करने के लिए देना पड़ता है। राज्य के मंत्री तक का चैनल बना हुआ है, जो भ्रष्टाचार के कारण दियारा की समस्या का समाधान नहीं करना चाहते हैं।