बेगूसराय।प्राकृतिक और अप्राकृतिक आपदा की मार झेल रहे बेगूसराय के किसानों पर लगातार विपदाएं आ रही है। जलजमाव और सुखाड़ की मार झेलने के बाद अभी किसान होश संभाल ही रहे थे कि अमेरिकी शत्रु फॉल आर्मी वर्म ने खेत पर हमला कर दिया है। 20 हजार एकड़ से अधिक में लगी मक्का की फसल प्रभावित हो चुकी है।
जिसके कारण हजारों किसान खून के आंसू रोने को मजबूर हैं। लेकिन अधिकारी सिर्फ जांच कर रहे हैं, किसी प्रकार की राहत नहीं मिल रही है। किसानों का कहना है कि मक्का की खेती जहां-जहां भी हो रही है, प्रत्येक क्षेत्र में फाल आर्मी वर्म का अटैक हो गया है और प्रकोप अनवरत जारी है। किसान स्थानीय दवा विक्रेता से दवा लेकर इसका खुद इलाज और उपचार कर लेते हैं।
सरकार की ओर से इसको रोकथाम के लिए कोई भी महा अभियान अब तक नहीं चलाया गया है। पिछले तीन वर्षों से अधिक समय से सिर्फ सूचना एकत्रित करने का ही काम किया जाता रहा है। सरकार किसने की सहायता और उनके उत्थान के लिए करोड़ों-अरबों रुपये खर्च कर रही है। लेकिन फॉल आर्मी वर्म से बचाव के लिए समय से पहले ना तो जागरुक किया जाता है और ना ही कोई प्रयास किया जाता है।
इस संबंध में जानकारी लेने के लिए जिला कृषि पदाधिकारी को फोन किया गया तो अपने पुराने आदत के मुताबिक उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। बताया जा रहा है कि फॉल आर्मी वर्म (पतन सैन्य कीट) दक्षिण अफ्रीका से शुरू होकर विभिन्न देश में किसानों को तबाह करने के बाद भारत में कर्नाटक से होते हुए बेगूसराय तक आ गया है। बेगूसराय में मक्का की फसल पर जोरदार हमला कर दिया है। जिसके कारण फसल 50 से 70 प्रतिशत तक प्रभावित हो गई।
पतन सैन्य कीट एक बहुभोजी कीट है एवं इसके करीब 80 हॉट-स्पॉट हैं। जिनमें ग्रैमिनी पोएसी परिवार का प्लांट प्रमुख है। इसके तहत मक्का, मिलेट, ज्वार, गेहूं, गन्ना, चारे वाली घास, स्पिनैक, साग वाली फसलें, लूसर्न घास, सूरजमुखी, बंधा गोभी और आलू को भी यह प्रभावित करता है। फिलहाल अभी किसानों ने मक्का पर इसकी पहचान किया है। आर्मी वर्म का लावा भूरा और धूसर रंग का होता है, जिसके शरीर के साथ अलग टयूबरकल दिखता है।
इसके पीठ के नीचे तीन पतली सफेद धारियां और सिर पर सफेद उल्टा अंग्रेजी शब्द वाई दिखता है। जिस से सहज ही किसा पहचान कर सकते हैं। काफी तेजी से फैलने वाले इस कीट के मादा एक रात में एक सौ किलोमीटर से अधिक उड़ते हैं तथा पूरे जीवन काल में 15 सौ तक अंडे देती है। तत्काल यह मक्का के पत्तों के साथ-साथ बाली को भी विशेष रूप से प्रभावित करता है।
इस कीट का लार्वा मक्का के छोटे पौधे के डंठल में घुसकर अपना भोजन ग्रहण करते हुए पौधा को प्रभावित कर देता है। प्रारंभिक अवस्था में समेकित कीट प्रबंधन ही बचाव का विकल्प है। बेगूसराय में इसका खुलासा होने के बाद कृषि विभाग ने बचाव के संबंध में बताने और जागरूकता फैलाने का निर्देश दिया। लेकिन अन्य योजनाओं की तरह यह भी सिर्फ कागज पर ही चल रहा है।