नई दिल्ली। मणिपुर हिंसा मामले पर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर दी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि स्थिति सुधर रही है। इस समय किसी भी अफवाह से बचने की जरूरत है। तब चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि इस रिपोर्ट को देखकर अपनी तरफ से सुझाव दें। हम कल सुनवाई करेंगे।
तीन जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा पर ताजा स्टेटस रिपोर्ट तलब की थी। सुनवाई के दौरान मणिपुर ट्राइबल फोरम की ओर से वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा था कि दो जुलाई की रात तीन लोगों की हत्या कर दी गई। इनमें से एक आदिवासी का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। सिर धड़ से अलग करने की ये पहली घटना है। ये विकट स्थिति है। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि केंद्रीय बलों की 114 कंपनियां तैनात की गई हैं। हालात सुधर रहे हैं। इसका मणिपुर ट्राइबल फोरम ने कड़ा विरोध किया। गोंजाल्वेस ने कहा था कि कुकी समुदाय पर हमले हो रहे हैं। सरकार नाकाम है। उसके बाद कोर्ट ने मणिपुर सरकार से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
याचिका मणिपुर ट्राइबल फोरम ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने कोर्ट में जो आश्वासन दिया था, वो झूठा था। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार मणिपुर के मामले पर गंभीर नहीं है। याचिका में कहा गया है कि मणिपुर हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 17 मई को जो पिछली सुनवाई हुई थी उसके बाद से कुकी समुदाय के 81 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 31,410 कुकी विस्थापित हो चुके हैं। इस हिंसा में 237 चर्चों और 73 प्रशासनिक आवासों को जला दिया गया है। इसके अलावा करीब 141 गांवों को नष्ट कर दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार और राज्य के मुख्यमंत्री कुकी समुदाय को खत्म करने के सांप्रदायिक एजेंडे पर काम कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि मीडिया में रिपोर्ट दिखाई जा रही है कि दो समुदायों के बीच की लड़ाई है। ये तस्वीर पूरी तरह से गलत है। हमलावरों को सत्ताधारी दल भाजपा का समर्थन प्राप्त है। ऐसे में जो लोग हमलावरों का समर्थन कर रहे हैं अगर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाता है तो शांति बहाली के सारे प्रयास बेमानी साबित होंगे।
गौरतलब है कि 17 मई को केंद्र सरकार और मणिपुर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि हिंसा काबू में आ चुकी है। हाई कोर्ट ने मैतई समुदाय को जनजाति (एसटी) का दर्जा देने का जो आदेश दिया था, उसके लिए भी राज्य सरकार को हाई कोर्ट ने एक साल का समय दे दिया था। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आगाह किया था कि सरकार से जुड़े लोग किसी समुदाय के खिलाफ बयान न दें। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पहले से दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। एक याचिका भाजपा विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई और दूसरी याचिका मणिपुर ट्राइबल फोरम ने दायर की है। विधायक गंगमेई की याचिका में मणिपुर हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट के फैसले के बाद पूरे मणिपुर में अशांति हो गई है। इसकी वजह से कई लोगों की मौत हो गई। हाई कोर्ट ने 19 अप्रैल को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वो मैतई समुदाय को एसटी वर्ग में शामिल करने पर विचार करे। गंगमेई की याचिका में कहा गया है कि किसी जाति को एसटी में शामिल करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है न कि हाई कोर्ट के पास।