मेदिनीनगर। पलामू के छत्तरपुर अनुमंडल के ग्राम देवगन अस्थित जमींदोज हो चुके ऐतिहासिक गढ़ पुरातात्विक अध्ययनों के अभाव में गुमनामी के अंधेरे में है। सैकड़ों एकड़ के लम्बे चौड़े भू-भाग में फैले इस विशाल गढ़ की भौगोलिक स्थिति से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि इसके मलवे के नीचे अनुमंडल का अतीत छुपा है।
देवगन धाम की प्राकृतिक सुंदरतम छटा के बीच टूटी-फूटी प्राचीनतम मूर्तियां, भग्नावशेष, उबड़ खाबड़ भूमि व बिखरे पड़े छोटे-बड़े पत्थर गढ़ की ऐतिहासिकता के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। इस गढ़ की खुदाई एवं इसका पुरातात्विक अध्ययन अनुमंडल के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ सकता है। छत्तरपुर अनुमंडल मुख्यालय से दस किलोमीटर की दूरी पर ग्राम देवगण में एक प्राचीनतम विशाल ऐतिहासिक गढ़ स्थित है, वर्तमान में उक्त स्थल पर शीश महल, ग्रामीण विद्यालय, गोशाला, राधाकृष्ण की दुर्लभ प्रतिमा व बगल में कमलों से सुशोभित तालाब स्थित है। गढ़ परिसर के एक कमरे में कुछ अंग-भंग मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं। इन अंग-भंग मूर्तियों को देखने से पता चलता है कि नटराज शिव, दुर्गा, गणेश, कामधेनु व राधा कृष्ण कि मूर्तियां अपने अंदर दुर्लभ प्राचीनतम रहस्य को समेटे अपनी स्थिति पर आंसू बहा रही है। यह मूर्तियां यहां किसी हिन्दू राजा के होने का संकेत देती हैं, लेकिन मूर्तियां का अंग-भंग होना यह भी संकेत देता है कि गढ़ के राजा को विदेशी आक्रांताओं का कई झंझावतों को झेलना पड़ा होगा या फिर किसी भीषण प्राकृतिक आपदा में एक समृद्ध राज्य का पतन हुआ होगा।
देवगन ग्राम के ग्रामीणों के अनुसार कभी यह जगह पर ‘बावन गली तिरपन बाजार’ हुआ करते थे, जिसके अवशेष आज भी आसपास की पहाड़ियों पर बिखरे पड़े हैं। ग्रामीण का कहना है कि उक्त स्थल पर मंदिर निर्माण के लिए नींव की खुदाई की जा रही थी, तब उसके नीचे फर्श मिला और राधा कृष्ण की दुलर्भ मूर्तियां समेत अन्य कई मूर्तियां मिली थीं। इसके बाद ग्रामीणों ने खुदाई बंद कर उक्त स्थल पर ही शीश महल मंदिर का निर्माण कर राधाकृष्ण की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। इससे स्पष्ट होता है कि गढ़ के नीचे या तो भवन स्थित है या फिर उसके अवशेष।
इलाके के बुजुर्गों का मानना है कि कभी गढ़ के चारो तरफ चाहरदिवारी के भग्नावशेष थे, पर कालांतर में वे जमींदोज हो गये। ये सारे संकेत गढ़ की ऐतिहासिकता की प्राचीनतम निर्माण योजना का जीवंत उदाहरण है। गढ़ की ऐतिहासिकता कितनी पुरानी है, यहां किस राजा का शासन या व गढ़ के मलवे ग्रामीण यह भी बताते हैं कि कुछ वर्ष पुर्व पुरातत्व विभाग के लोग सर्वेक्षण के लिये आये थे। उसके बाद से पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के शिकार ये महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल वीरान पड़ा है, जबकि झारखण्ड सरकार चाहे तो इस इलाके में पर्यटन की असीम संभावनाएं तलाश सकती हैं। मकर सक्रांति के दिवस पर इस स्थल पर विशाल मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता है।