दुमका। गलत काम करने वालों को एक न एक दिन कर्म की सजा मिल ही जाती है। सरैयाहाट के एक सेवानिवृत्त शिक्षक सुखदेव मंडल ने फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी की और सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी प्रावधान का लाभ भी उठाया। विभाग ने जब सरकारी राशि जमा करने के आदेश दिया तो मुकर गए। 12 साल तक चले मुकदमे के बाद शुक्रवार को अदालत ने दोषी पाकर सजा सुनाई। प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी विजय कुमार यादव की अदालत ने शिक्षक को तीन धारा में छह साल की सजा और 50 लाख रुपया जुर्माना की सजा सुनाई। जुर्माना की राशि सरकारी कोष में जमा नहीं करने पर अभियुक्त को छह माह की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी।
सजा की खास बात यह है कि तीन धारा में सुनाई गई सजा एक साथ नहीं चलेगी। पहले तीन, फिर दो और अंत में एक साल की सजा काटनी होगी। सरकार की ओर से एपीपी खुशबूददीन अली ने बहस की। इस केस में केवल एक की गवाही दर्ज कराई गई।
क्या है पूरा वाक्या
वर्ष 2011 में तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक को जांच के क्रम में पता चला कि सरैयाहाट प्रखंड के कानीजोर प्राथमिक विद्यालय के सेवानिवृत्त शिक्षक सुखदेव मंडल ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की है। इतना ही सेवानिवृत्त होने के बाद सरकारी प्रावधान के तहत राशि भी ली। 27 अप्रैल 11 को उन्होंने बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के सचिव को सारी जानकारी देकर कुछ बिंदुओं पर जांच कराने का अनुरोध किया। जांच में पता चला कि शिक्षक ने 1968 का मैट्रिक का जो प्रमाण पत्र दस्तावेजों के साथ जमा किया है, अभिलेख में उनके नाम की जगह दूसरे का नाम है। इससे लगता है कि छात्र ने फर्जी कागजात तैयार कर नौकरी हासिल की है।
उन्होंने तत्कालीन प्रखंड शिक्षा प्रसार पदाधिकारी अमरनाथ साहू को तत्काल प्राथमिकी का निर्देश दिया। साथ ही शिक्षक को नोटिस देकर कहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने जो सरकारी राशि प्राप्त की है, एक पक्ष के अंदर सारी राशि देवघर कोषागार में जमा कर दें। लेकिन शिक्षक की ओर से किसी तरह का जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद साफ हो गया कि शिक्षक ने सारी सरकारी राशि का गबन कर लिया है। डीएसई के आदेश पर बीईईओ ने 18 अगस्त 11 को सरैयाहाट थाना में फर्जी प्रमाण पत्र पर सरकारी सेवा करने और सेवानिवृत्ति के बाद प्राप्त सरकारी राशि वापस नहीं करने का मामला दर्ज कराया।