हेल्थ डेस्क : अनुलोम का अर्थ होता है सीधा और विलोम का अर्थ है उल्टा। यहां पर सीधा का अर्थ है नासिका या नाक का दाहिना छिद्र और उल्टा का अर्थ है-नाक का बायां छिद्र। अर्थात् अनुलोम-विलोम प्राणायाम में नाक के दाएं छिद्र से सांस खींचते हैं, तो बायीं नाक के छिद्र से सांस बाहर निकालते है। इसी तरह यदि नाक के बाएं छिद्र से सांस खींचते है, तो नाक के दाहिने छिद्र से सांस को बाहर निकालते है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम को कुछ योगीगण ‘नाड़ी शोधक प्राणायाम’ भी कहते हैं। उनके अनुसार इसके नियमित अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शोधन होता है यानी वे स्वच्छ व निरोगी बनी रहती है। इस प्राणायाम के अभ्यासी को वृद्धावस्था में भी गठिया, जोड़ों का दर्द व सूजन आदि शिकायतें नहीं होतीं।
योग का हमारी जिंदगी में बड़ा महत्व होता है। जो लोग नियमित रूप से योग करते हैं वो कई सारी बीमारियों से बचे रहते हैं। इसके अलावा योग करने से तनाव कम होता है और आप फिट और हेल्दी बने रहते हैं। अनुलोम विलोम भी योग का ही एक रूप है जो बहुत ही कारगर साबित होता है।अगर आप रोजाना 10 मिनट इसका अभ्यास करते हैं तो तन और मन दोनों तरोताजा रहते हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि अनुलोम विलोम कैसे करें और इससे क्या लाभ मिलते हैं।
अनुलोम-विलोम एक योग है ये सेहत को दुरुस्त रखने के लिए बहुत कारगर है। इस योग को करने के लिए एक नथुने को अपनी उंगली से पकड़ना और दूसरे नथुने को बंद रखते हुए सांस लेना और धीरे-धीरे छोड़ना शामिल है। फिर आप इस प्रक्रिया को उल्टा करके दोहराएं।
लाभ
- फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।
- सर्दी, जुकाम व दमा की शिकायतों से काफी हद तक बचाव होता है।
- हृदय बलवान होता है।
- गठिया के लिए फायदेमंद है।
- मांसपेशियों की प्रणाली में सुधार करता है।
- पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है।
- तनाव और चिंता को कम करता है।
- पूरे शरीर में शुद्ध ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है।
सावधानियां
– कमजोर और एनीमिया से पीड़ित रोगी इस प्राणायाम के दौरान सांस भरने और सांस निकालने (रेचक) की गिनती को क्रमश: चार-चार ही रखें। अर्थात् चार गिनती में सांस का भरना तो चार गिनती में ही सांस को बाहर निकालना है।
– स्वस्थ रोगी धीरे-धीरे यथाशक्ति पूरक-रेचक की संख्या बढ़ा सकते हैं।
– कुछ लोग समयाभाव के कारण सांस भरने और सांस निकालने का अनुपात 1:2 नहीं रखते। वे बहुत तेजी से और जल्दी-जल्दी सांस भरते और निकालते है। इससे वातावरण में व्याप्त धूल, धुआं, जीवाणु और वायरस, सांस नली में पहुंचकर अनेक प्रकार के संक्रमण को पैदा कर सकते हैं।
– अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते समय यदि नासिका के सामने आटे जैसी महीन वस्तु रख दी जाए, तो पूरक व रेचक करते समय वह न अंदर जाए और न अपने स्थान से उड़े। अर्थात् सांस की गति इतनी सहज होनी चाहिए कि इस प्राणायाम को करते समय स्वयं को भी आवाज न सुनायी पड़े।