चंदवारा (कोडरमा)। प्रखंड अंतर्गत सुहागिनें पति की लंबी आयु एवं सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए गुरूवार को अमावस्या धृति व रोहिणी नक्षत्र में सुहागिनें की वट सावित्री की पूजा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट वृक्ष की शाखा को देवी सावित्री का रूप माना गया है, जिसमें ब्रह्मा, शिव, विष्णु के साथ स्वयं माता सावित्री भी निवास करती है। मान्यता के अनुसार वट सावित्री व्रत करने से सुहागिने अखंड सुहाग, पति की दीर्घायु, वंश वृद्धि, दांपत्य जीवन में सुख शांति मिलती है, साथ हीं वैवाहिक जीवन में आने वाले सभी तरह के कष्ठ से मुक्ति मिलती है। वहीं वट सावित्री के दिन बटवृक्ष की पूजा करने से शनि, मंगल और राहु के अशुभ प्रभाव भी समाप्त होते हैं।
बट वृक्ष का वैज्ञानिक महत्व
बरगद का वृक्ष को हमेशा आॅक्सीजन सिलेंडर भी कहा जाता है। कई शोध में भी सामने आया है कि बरगद का पेड़ दिन में 20 घंटे ज्यादा आॅक्सीजन उत्सर्जित करता है। वट वृक्ष 12 महीने हरा-भरा रहता है, यह कार्बन डाइआॅक्साइड ग्रहण कर दूसरे वृक्षों की तुलना में अधिक आॅक्सीजन छोड़ता है।
बरगद पेड़ का धार्मिक महत्व
शास्त्रों की मानें तो वट वृक्ष की छाल में विष्णु जड़ों में ब्रह्मा और शाखा में शिव विराजमान होते हैं। भगवान बुद्ध भी बरगद के पेड़ के नीचे ही ध्यान किये थे तब से इस वृक्ष को बौद्ध धर्म में आध्यात्मिक वृक्ष के रूप में भी पूजा जाता है।