रांची। राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने कहा है कि आज हालात बदल चुके हैं और पढ़ाई के लिए पहले से बेहतर माहौल बना हुआ है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि अधिक से अधिक लोग उच्च शिक्षा हासिल करें। साथ ही, जनजातियों को पढ़ाई के लिए दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए। अपने कार्यों से समाज के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरना चाहिए, जिस प्रकार आज जनजातियों की परंपरा और संस्कृति का पूरे विश्व में उदाहरण दिया जाता है, उसी प्रकार शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में भी उन्हें पिछड़ा न समझा जाए, आदर्श माना जाय।
राज्यपाल गंगवार गुरुवार को रांची विश्वविद्यालय में विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कल विश्व आदिवासी दिवस है। मुझे खुशी है कि रांची विश्वविद्यालय ने संयुक्त राष्ट्र संघ के थीम प्रोटेक्टिंग द राइट्स ऑफ इंडीजिनस पिपुल इन वोलेंटरी आइसोलेशन एंड इंनिसियल कांटेक्ट पर जोहार संगी 24 का आयोजन किया गया है। राज्यपाल ने कहा कि राज्य में सार्वजनिक स्तर पर यह मेरा पहला कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम में आप सभी के बीच सम्मिलित होकर अभिभूत हूं।
झारखंड वीरों की भूमि है, जहां धरतीआबा बिरसा मुंडा, बीर बुधु भगत, सिदो-कान्हु, चांद-भैरव, फूलो-झान्हो, जतरा उरांव जैसे महान सपूतों ने अपनी मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। इन महान सपूतों का जन्म जनजाति समुदाय में हुआ था और उन सभी ने अपने उल्लेखनीय कार्यों से दिखाया कि वीरता और यश के लिए किसी विशिष्ट जाति और कुल की जरूरत नहीं है, बल्कि श्रेष्ठ कर्म की आवश्यकता होती है। इस अवसर पर मैं इन महान सपूतों के प्रति अपनी श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूं, जिन्होंने हमारी मातृभूमि के लिए संघर्ष किया और अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की।
उन्होंने कहा कि अति प्राचीन काल से ही जनजातीय समुदाय भारतीय सभ्यता और संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग रहे हैं। उनकी कला, संस्कृति, लोक साहित्य, परंपरा और रीति-रिवाज की ख्याति विश्व स्तर पर है। जनजातीय गीत और नृत्य अत्यंत मनमोहक होते हैं, जो सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मुझे गर्व है कि हमारे जनजाति भाई-बहन प्रकृति प्रेमी होते हैं, जिसकी झलक उनके पर्व-त्योहारों में दिखती है।
झारखंड की जनजातियों की संख्या लगभग 27 प्रतिशत
झारखंड राज्य की 3.28 करोड़ से अधिक की आबादी में, जनजातियों की संख्या लगभग 27 प्रतिशत है। राज्य में 32 प्रकार की अनुसूचित जनजातियां हैं, जिनमें 8 प्रकार के पीवीटीजी भी शामिल हैं। अधिकांश जनजाति लोग गांवों में निवास करते हैं और उनके पास विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार की विधा होती है। वे कई प्रकार की व्याधियों के उपचार की औषधीय दवा के संदर्भ में जानते हैं। अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए सरकार की कई कल्याणकारी योजनाएं संचालित हैं।
हमारे जनजाति भाई-बहनों को इन योजनाओं के प्रति पूरी तरह से जागरूक होने की आवश्यकता है, ताकि वे इन योजनाओं से पूर्णतः लाभान्वित हो सकें। उन्हें अपनी संस्कृति और भाषा का भी सम्मान करना चाहिए और इसे संरक्षित रखना चाहिए। मुझे यह कहते हुए गौरव हो रहा है जनजाति समाज में दहेज-प्रथा नहीं है, जो एक अनुकरणीय उदाहरण है। जनजातियों को शिक्षा के प्रति और अधिक जागरूक होने की जरूरत है। ज्ञान किसी भी राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक प्रगति में अहम भूमिका निभाता है. कहते हैं, ”ज्ञान ही शक्ति है”। इसलिए सभी को शिक्षित होना चाहिए, चाहे वो बालक हो या बालिका।