बेगूसराय। बिहार के बेगूसराय जिला में स्थित पावन गंगा तट सिमरिया धाम में लगा कार्तिक कल्पवास मेला अब अपने पूर्ण स्वरूप में आ गया है। इस वर्ष यहां लगे कुंभ के कारण ना सिर्फ कल्पवासी, बल्कि बड़ी संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों से साधु-संत भी पहुंच चुके हैं।
सिमरिया का चप्पा-चप्पा भक्ति और आध्यात्म के संगम में डुबकी लगा रहा है, सभी खालसा में वेद ऋचाएं गूंज रही है। गोविंद जीव सेवा संस्थान से जुड़े सभी कल्पवासी भी अपने आध्यात्मिक दिनचर्या में लीन हैं। खालसा के आचार्य राघवेन्द्र राघव ने आज कहा कि पुराणों और शास्त्रों में वर्णन है कि कार्तिक मास में गंगा तट पर कल्पवास करनी चाहिए।
इसी से प्राचीन काल से गंगा किनारे कल्पवास की परंपरा चल रही है। कार्तिक कल्पवास के समय सिमरिया गंगा तट का विशेष महत्व है। गोविंद जीव सेवा संस्थान की खालसा सन् 2000 से पूरी व्यवस्था के साथ चल रही है। 2008 में सिमरिया के कल्पवास को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा राजकीय कल्पवास का दर्जा दिया गया।
इसके बाद व्यवस्था होने लगी। सर्वमंगला सिद्धाश्रम के संस्थापक स्वामी चिदात्मन जी के प्रयास और संत समाज के पहल पर 2011 में जब पहली बार सिमरिया में अर्धकुंभ लगा तो उसके बाद व्यवस्था बदलने लगी। 2017 में कुंभ के उद्घाटन में आए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब यहां की समस्या से रूबरू हुए तो इस ओर तेजी से ध्यान गया।
बिहार सरकार के मंत्री संजय झा के प्रयास से सिमरिया उत्तर बिहार का प्रमुख तीर्थ स्थल बन रहा है। सरकार को चाहिए कि भीड़ को देखते हुए सभी व्यवस्था उपलब्ध कराएं। इस वर्ष कल्पवास मेला क्षेत्र बन जाने से कल्पवासियों को काफी राहत मिलती है। पहले जंगल में उबड़-खाबड़ जमीन में अपना घर बना कर रखना पड़ता था।
ना सही शौचालय, ना पीने के पानी की व्यवस्था थी। लेकिन अब इसमें बदलाव हुआ, इस वर्ष सरकार ने सुव्यवस्थित कल्पवास क्षेत्र बना दिया गया है। इससे कल्पवासी बेहतर महसूस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कार्तिक का विशेष महत्व है। लेकिन तुला राशि में सूर्य के रहने पर गंगा तट पर वास करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
यहां दो तरीके से कल्पवास लगता है, अगर संक्रांति पहले हो गई तो संक्रांति से कार्तिक पूर्णिमा तक और अगर आश्विन पूर्णिया पहले हो गई तो पूर्णिया से अगले संक्रांति तक। इस वर्ष संक्रांति से कार्तिक पूर्णिमा तक का कल्पवास हो रहा है। जिसमें मिथिला और बिहार ही नहीं, पड़ोसी राज्य और पड़ोसी देश के भी श्रद्धालु वास कर रहे हैं।
गंगा स्नान से शुरू हम कल्पवासियों की दिनचर्या गंगा पूजन, तुलसी पूजन, श्रीमद् भागवत, कार्तिक महात्म्य, रामायण, वेद की ऋचाएं सहित अन्य धर्म ग्रंथों के पठन एवं श्रवण के माध्यम से गुजरते हुए संध्याकालीन आरती के साथ समाप्त होती है। गंगाजल से बना भोजन और धरती माता के आगोश में सोने से ना सिर्फ निरोगता आती है, बल्कि शरीर में नई ऊर्जा की अनुभूति होती है।