कोडरमा। जिले के मेघातरी पंचायत अंतर्गत एनएच पर संचालित बस स्टैंड की 2024-25 के लिए गुरूवार को बंदोबस्ती हुई। यह बंदोबस्ती सबसे अधिकतम बोली लगाने वाले मेघातरी निवासी पंकज रजवार के नाम हुई। उन्होंने कुल 74 लाख 76 हजार की बोली लगाई। बंदोबस्ती को लेकर उप विकास आयुक्त सह जिला परिषद के मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी ऋतुराज एवं जिला परिषद अध्यक्ष रामधन यादव की मौजूदगी में हुई।
गाड़ी न सवारी, आमदनी में सब पर भारी
कोडरमा स्थित मेघातरी बस पड़ाव राज्य में सर्वाधिक राजस्व देनेवाले चुनिंदा बस पड़ावों में शुमार हो गया है। वहीं गुरूवार को पड़ाव की बंदोबस्ती करीब 9 महीने के लिए 74 लाख 76 हजार में बंदोबस्ती हुई। वहीं जिले के झुमरीतिलैया व कोडरमा शहर में किसी भी स्टैंड की बंदोबस्ती अधिकतम 4-5 लाख हुआ करता है। आसपास के जिले के बड़े बस पड़ाव में शुमार हजारीबाग जिला परिषद का बस पड़ाव, रामगढ़ छावनी परिषद का बस पड़ाव की बात करें तो राजस्व के मामले में मेघातरी से काफी पीछे है। जबकि यहां से झारखंड समेत विभिन्न राज्यों के लिए दर्जनों बसें खुलती हैं। अब बात करते हैं मेघातरी बस स्टैंड की। इसकी स्थिति कोडरमा जिले के सुदूरवर्ती जंगली क्षेत्र स्थित गांव मेघातरी में है। भौगोलिक स्थिति झारखंड-बिहार की सीमा है।
बस पड़ाव के लिए जगह-एक इंच भी नहीं। पड़ाव की संरचना है दो चैकी के ऊपर से एक तिरपाल के टेंट, ना तो कोई बस यहां से खुलती है, ना ही रुकती है। साफ शब्दों में यह बस पड़ाव अजूबा है। जहां पड़ाव के नाम पर एनएच-31 से गुजरनेवाली वाहनों से लाठी-डंडे के बल पर अवैध वसूली होती है। जिसके लिए लाइसेंस कोडरमा जिला परिषद् देता है। कोडरमा जिला परिषद का यह शैरात है। जिला प्रशासन के अधिकारी भी मानते हैं कि यहां पड़ाव को कोई औचित्य नहीं है।
जिले के पूर्व उपायुक्त संजीव बेसरा ने वर्ष 2017 में इस शैरात को रद्द के लिए सरकार को लिखा भी, कहा गया कि यहां स्टैंड का कोई औचित्य नहीं है। स्टैंड के नाम पर सिर्फ अवैध वसूली होती है। मगर सरकार के सामने आड़े आ गया राजस्व का मामला। संचिका वापस जिला प्रशासन को भेज कहा गया कि इस राजस्व के वैकल्पिक उपाय की तलाश की जाए, इसके बाद बात खत्म हो गई। पिछले दिनों स्टैंड के नाम पर अवैध वसूली के आरोप में गिरफ्तार भी हुए थे। इन सबके बावजूद स्टैंड को बनाए रखना जिला प्रशासन की मजबूरी बन गई है।