कोडरमा। शहर की सड़कों पर चलने वाले वाहन इन दिनों आम आदमी की सेहत से खिलवाड़ कर रहें हैं। प्रेशर हार्न को स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह माना गया है, इसलिए इसपर प्रतिबंध लगा है। मगर कोडरमा में यह रोक प्रभावी नहीं है। बसों और ट्रकों में लगे प्रेशर हार्न के कारण सड़क के किनारे खड़ा होना मुश्किल हो गया है। यही नहीं टीन एजर्स बाईकर्स भी दोपहिया में प्रेशर हार्न लगाकर दूसरे वाहन चालकों के लिए मुसीबत बने हुए हैं, इनके कारण हादसे बढ़ रहें हैं। मगर परिवहन विभाग और प्रदूषर्ण बोर्ड को इससे कोई मतलब नहीं है।
नियमों को ताक पर रखकर लगाए जाते हैं प्रेशर हार्न
जानकारों की मानें तो सरकार ने सड़कों पर चलने वाले भारी वाहनों को 45 से 55 डेसीबल के हार्न लगाने की अनुमति दी है। मगर यहां तो नियम कानून को ताक पर रखकर 125 से 150 डेसीबल के हार्न बजाकर सड़कों पर चलते हैं। जबकि 150 डेसीबल तक के हार्न ट्रेनों में लगाए जाते हैं। इससे ध्वनि प्रदूषण का खतरा बढ़ता है और लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। प्रेशर हार्न के कारण लोगों के कान पर असर पड़ता है और उनके बहरा होने का खतरा बढ़ जाता है।
नहीं होती ध्वनि तीव्रता की जांच
प्रदूषण बोर्ड की ओर से सामान्य दिनों में ध्वनि प्रदूषण की जांच नहीं होती है। कोडरमा में प्रदूषण बोर्ड का न कार्यालय है न अधिकारी। इसलिए इसकी कोई व्यवस्था भी नहीं है। इस ओर आम लोग भी सजग नहीं हैं। प्रेशन हार्न बजाते हुए ट्रक और बस गुजर जाते हैं। आम लोग थोड़ी देर के लिए मुंह बनाते हैं, फिर अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं। अगर आम लोग सजग हो जाएं तो इसके प्रभाव से हम बच सकेंगे।
प्रतिबंधित क्षेत्र में भी बजाते हैं प्रेशर हार्न
नियमानुसार शहर के भीड़भाड़ और शांत क्षेत्र में प्रेशर हार्न बजाने पर प्रतिबंध है। मगर यहां चालकों को नियम कानून से कोई मतलब नहीं है। अधिकारियों ने भी उन्हें रोकने की कभी कोई ठोस पहल नहीं की, इसके कारण भीड़भाड़ या शांत क्षेत्रों में भी प्रेशर हार्न का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। शांत क्षेत्र में अस्पताल, शिक्षण संस्थाएं, अदालत, कलेक्टेरियट, सार्वजनिक मंदिर, बाजार या अन्य पूजा स्थल और ऐसे सार्वजनिक स्थान आते हैं। इसी तरह जहां हर समय काफी भीड़ रहती है। वहां अधिक शोर मचाने पर रोक लगाई गई है।
ये हैं ध्वनि प्रदूषण के कुप्रभाव
अगर मनुष्य 60 डेसीबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि के बीच 8 से 10 घंटे बीताते हैं तो उन्हें जल्दी थकान महसूस होना, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द आदि होने लगता है। लगातार भारी शोरगुल के बीच रहने वाले लोगों की यह आदत में आ जाता है। मगर आधी उम्र बीतने के पर ऐसे लोगों को हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, स्थायी बहरापन, स्मरण शक्ति कमजोर हो जाना जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। नवजात बच्चों और गर्भस्थ शिशुओं के विकास को ध्वनि प्रदूषण बुरी तरह प्रभावित करती है।
घट रही है सुनने की क्षमता
लगातार तेज आवाज में रहने के कारण सबसे खराब प्रभाव स्कूली बच्चों को पड़ता है। चिकित्सक बताते हैं कि तेज आवाज सिर्फ कान के पर्दे को ही प्रभावित नहीं करते, इससे मानसिक संतुलन भी बिगड़ता है। लगातार तेज आवाज में रहने के कारण धीरे-धीरे सुनने की क्षमता कम हो जाती है। मगर एहसास नहीं होने के कारण पता नहीं चलता है। क्लास में शिक्षक द्वारा पढ़ाए जाने वाले पाठ को भी सही प्रकार से समझ नहीं पाते हैं और क्लास में पिछडने लगते हैं।