रांची। दुनिया में तमाम ऐसी बीमारियां हैं जिन्हें नेग्लेक्टेड यानि उपेक्षित रोगों की श्रेणी में रखा गया है जबकि उनमें से कुछ बीमारियां समुदाय में स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती हैं। इन्ही में से एक बीमारी है, लिम्फेटिक फाइलेरियासिस जिसे आम तौर पर हम फाइलेरिया अथवा हाथीपांव के नाम से जानते हैं। संक्रमित मच्छर द्वारा फैलने वाली यह बीमारी किसी भी उम्र या समुदाय के स्वस्थ व्यक्ति को जीवन भर के लिए दिव्यांग बना सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार फाइलेरिया दुनिया भर में दीर्घकालिक विकलांगता का दूसरा प्रमुख कारण है।
शुक्रवार को रांची में आयाेजित कार्यक्रम में राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम, डॉ. बीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि फाइलेरिया से बचाव के लिए सोने के समय मच्छरदानी का प्रयोग करने एवं घर के आसपास साफ-सफाई रखने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि घरों के इर्द- गिर्द गंदगी तथा जल-जमाव होने से मच्छरों का प्रकोप बढ़ता है जिससे कई प्रकार की संक्रामक बीमारिया फैलती है। उन्होंने कहा कि फाइलेरिया उन्मूलन अभियान को हमारे स्वास्थ्य कर्मी घर-घर तक लेकर जा रहे हैं, ताकि इस अभियान में एक भी व्यक्ति ना छूटे। डॉ. बीरेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इससे बचाव के लिए सरकार द्वारा लोगों को मुफ्त में खिलाई जा रही फ़ाइलेरिया रोधी दवाएं पूरी तरह सुरक्षित है। इन दवाओं को खाली पेट नहीं खाना चाहिए। इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं है।
उन्होंने कहा कि किसी मरीज में अगर कोई साइड इफेक्ट होता है तो उन्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है, चूंकि किसी व्यक्ति के खून में अगर माइक्रफाइलेरिया है, तो दवा के कारण माइक्रफाइलेरिया नष्ट हो जाता है, जिससे दवा खाने के कुछ समय बाद थोडा चक्कर आना, उल्टी होना या उल्टी जैसा लगना , ये छोटे-मोटे प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं, जो कुछ समय बाद ठीक हो जाते हैं और उस व्यक्ति में फ़ाइलेरिया होने की सम्भावना कम हो जाती है। उन्होंने बताया कि फाइलेरिया मुक्त झारखण्ड के लिए अन्तर्विभागीय समन्वय बनाकर प्रयास किये जा रहें हैं और हमें पूरा विश्वास है कि हमारे राज्य से शीघ्र ही फाइलेरिया का पूर्ण रूप से उन्मूलन होगा।