रांची। झामुमो के महासचिव सह प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि प्रकृति पर्व सरहुल इस बार एक विशेष रुप में मनाया गया। लाखों आदिवासी रांची के सड़कों पर प्रकृति के साथ हो रहे पूंजीपतियों के द्वारा छेड़छाड और प्रकृति को नष्ट करने के लिए जो केंद्र सरकार की नीतियां बनी है, उसपर अपना आक्रोश और व्यथा दोनों व्यक्त किये। ये कोई साधारण बात नहीं थी। जो आदिवासियों को उजाड़ने के लिए प्रकृति को समाप्त करने के लिए फोरेस्ट राइट एक्ट में बदलाव किये गये। माइनिंग के लिए प्रकृति को खत्म करने के लिए जो कानून पारित किये गये उसके खिलाफ एक रोष था।
भट्टाचार्य शुक्रवार को पार्टी कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों हमलोगों ने देखा कि सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ सरकार के नीति के बारे में जो भ्रम फैलाया गया। उसके खिलाफ अपना राय दिया, लेकिन उसके पहले ही खेला हो गया। हर सेवा में अंबानी घुस गया। पेड़ों को काटा जा रहा है और यही लड़ाई आदिवासी समुदाय करने निकले थे। आदिवासी है तो प्रकृति है, आदिवासी है तो जल, जमीन, जंगल और जानवर है।
उन्होंने कहा कि सृष्टि के इस मूल तत्व को समाप्त करने की भाजपा की जो साजिश है उसका विरोध सरहुल में दिखा। लोगों में जो चेतना है यदि इस देश में हिन्दू इस्लाम, ईसाई, सीख, बौद्ध धर्म है तो आदिवासी धर्म कहां गया। आदिवासी सरना धर्मकोड विधानसभा से ध्वनि मत से पारित कराकर हमलोगों ने राजभवन भेजा। केंद्र सरकार की ऐसी कौन सी चाहत है, आदिवासियों के खिलाफ कैसी सोच है जो आदिवासियों के विधेयक को लौटा दिया जाता है। भाजपा को बताना चाहिए कि सरना धर्म कोड कब लागू होगा।
आर्दश आचार संहिता मामले में 26 लोगों पर एफआईआर मामले के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक पार्टी का शोभायात्रा नहीं था। यह आदिवासियों को आक्रोश सामने आया है। प्रशासन चुनाव आयोग के तहत काम कर रहा है।