जम्मू-कश्मीर: नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी कैबिनेट की पहली बैठक में इस संबंध में प्रस्ताव लाएगी और प्रधानमंत्री के सामने राज्य का प्रस्ताव पेश करेगी। उमर ने धारा 370 के मुद्दे पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि उनका रुख बरकरार है। उन्होंने चेतावनी दी कि 370 पर वे खामोश नहीं रहेंगे और इसे जिंदा रखेंगे।
अब्दुल्ला का यह बयान इस बात का संकेत है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस केंद्र सरकार के सामने जम्मू-कश्मीर के अधिकारों की बहाली की मांग को मजबूती से उठाने के लिए तैयार है। उनकी पार्टी इस मुद्दे को राजनीतिक विमर्श में सक्रियता से बनाए रखने का प्रयास कर रही है। फारूक अब्दुल्ला अब भी यही कह रहे हैं कि जनता का ये फैसला सबूत है कि जम्मू-कश्मीर के लोग अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ हैं।
370 के मुद्दे पर क्या कांग्रेस साथ देगी ?
उमर अब्दुल्ला से लोगों की बहुत अपेक्षा और आकांक्षा है। वो कश्मीर की पुरानी स्थिति बहाल कराने का वादा कर चुके हैं, लेकिन ये लड़ाई काफी मुश्किल है। और उसमें भी भारी मुश्किल ये है कि कांग्रेस का भी उसमें साथ नहीं मिलने वाला है।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तो कहते ही रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर को स्टेटहुड तो मिल जाएगा, लेकिन पुरानी स्थिति हरगिज नहीं बहाल होगी – और ये बात चुनावों से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साफ तौर पर बोल चुके हैं।ये तो उमर अब्दुल्ला भी जानते हैं कि कांग्रेस भी जम्मू-कश्मीर में पुरानी स्थिति बहाल करने की हिम्मत नहीं जुटा सकती – तभी तो राहुल गांधी भी सिर्फ स्टेटहुड की ही बात कर रहे हैं।
सत्ता स्थायी नहीं होती
माना जाता है कि सत्ता स्थायी नहीं होती और जम्मू-कश्मीर की अवाम ने जनादेश के जरिये इसे बखूबी समझाया है। दरअसल 2014 के विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने जीत का परचम लहराया था। 10 बरस बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस ने शानदार वापसी की है। 2010 के विधानसभा चुनाव में एनसी की झोली में 15 सीटें थीं। इस बार नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी ने करीब तीन गुना ज्यादा सीटें पाई है। जम्मू-कश्मीर में एनसी और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनने वाली है।
नेशनल कांफ्रेंस की जीत के मायने
उमर अब्दुल्ला की राजनीति ने धारा 370 हटाये जाने के बाद चुनाव नहीं लड़ने के ऐलान से लेकर दो-दो सीटों से चुनाव जीतने तक, एक लंबा सफर तय किया है – ऐसे में, ये तो है कि लोगों ने अब्दुल्ला परिवार पर भरोसा जताया, और पीडीपी को नकार दिया है। पीडीपी को बीजेपी के साथ सरकार बनाने की कीमत चुकानी पड़ी है।
अच्छी बात ये है कि अब्दुल्ला परिवार ने जनभावनाओं को समझा, और वक्त की जरूरत के हिसाब से रणनीति भी बदली। इंजीनियर राशिद से हार जाने के बावजूद उमर अब्दुल्ला ने हिम्मत नहीं छोड़ी, और जिस लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार गये थे, उसी के तहत आने वाली विधानसभा से फिर से मैदान में उतरे, और जीते भी – शायद यही वजह है कि जनता ने पूरे मैंडेट के साथ सत्ता सौंप दी है।
ये उमर अब्दुल्ला ही हैं, जो कभी कहा करते थे कि कोई सरकारी काम कराने के लिए वो दो घंटे जम्मू-कश्मीर के एलजी ऑफिस के बाहर बैठ कर इंतजार नहीं करेंगे। लेकिन, अब वो बीती बातें भूल कर आगे बढ़ने की बात कर रहे हैं। खुद भी केंद्र के साथ मिलकर काम करने की बात कर रहे हैं, और केंद्र से भी ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं।
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