कोडरमा। लोक आस्था का महान चार दिवसीय पर्व सूर्यषष्ठी व्रत शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ प्रारंभ होगा। वहीं छठ व्रती 18 नवम्बर शनिवार को खरना एवं 19 नवम्बर रविवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगे। वहीं 20 नवम्बर सोमवार को उदयगामी सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चार दिवसीय अनुष्ठान का विधिवत समापन हो जाएगा। शास्त्रों में द्वादश आदित्यों की कल्पना भगवान सूर्य की द्वादश शक्तियों के रूप में की गयी है। भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता माने जाते हैं।
इनकी पूजा की परंपरा बहुत पहले से भारत में ही नही बल्कि विश्व में व्याप्त है, क्योंकि सूर्य के प्रकाश से ही चन्द्र भी प्रकाशित होते हैं एवं तारे भी चमकते हैं जो अनेक ग्रहों, नक्षत्रों के रूप में माने जाते हैं। भगवान सूर्य के कारण ही दिन तथा रात का वर्गीकरण सम्भव हो पाता है।
आधुनिक वैज्ञानिक कृष्टिकोण से भी सौर ऊर्जा महत्वपूर्ण मानी जाती है। सूर्य की पूजा करने का विधान तो संध्योपासन में भी है, जिससे मानसिक एवं शारीरिक ऊर्जाएं प्राप्त होती हैं। इसके अतिरिक्त हमारी भारतीय संस्कृति भगवान सूर्य को परब्रह्म के रूप में मानती है। छठ पूजा पौराणिक काल से चली आ रही है, जिसका निर्देश लौकिक छठव्रत की कथाओं, मान्यताओं एवं महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले गीतों में मिलता है और यह प्रत्यक्ष भी है।
सत्व, रज, तम ये गुण छठी माता के नियंत्रण में काम करते हैं जो सृष्टि के संचालक एवं संबर्द्धक हैं। सूर्य षष्ठी व्रत का विधान सृष्टिकाल से ही चला आ रहा है। सूर्यषष्ठी व्रत श्रद्धा व विश्वास के साथ करने से मनुष्य के ज्ञाताज्ञात समस्त पापों का नाश होता है तथा मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है।