डोमचांच (कोडरमा)। नवलशाही थाना क्षेत्र अंतर्गत कानीकेंद मोड़ से करीब 7 किलोमीटर दूर पहाड़ों और जंगलों के बीच स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल मां चंचालिनी धाम लोगों का आस्था का केंद्र बना हुआ है। नवरात्र के मौके पर मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है। लेकिन चंचालिनी धाम में मां की 10वें स्वरूप यानी की कन्या स्वरूप की भी पूजा होती है। यहां मां दुर्गा को श्रृंगार तो चढ़ाया जाता है, लेकिन सिंदूर चढ़ाना पूरी तरह से वर्जित है। यहां नवरात्र के अवसर पर भव्य रूप से नौ दिवसीय अनुष्ठान का आयोजन किया गया है। जिसे लेकर समिति की ओर से साफ सफाई पूरी तरह से मुकम्मल कर ली गई है।
नवरात्र में चंचालिनी धाम में दूर-दूर से लोग पूजा अर्चना के साथ ही अपनी मनत्व को मांगने के लिए धरना भी देते हैं। वैसे तो सालोंभर यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के समय में यहां पूजा व दर्शन का खास महत्व माना जाता है। वहीं स्थानीय लोगों ने इसकी ख्याति मां वैष्णो देवी की तरह दिया है। यहां कोडरमा, हजारीबाग, गिरिडीह, नवादा, बंगाल, दिल्ली समेत कई राज्यों के लोग नवरात्र के मौके पर पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।400 फीट ऊंची चंचाल पहाड़ी पर मां चंचालिनी विराजमान है। जिसका सफर सीढीयों से शुरू होता है। खड़ी पहाड़ी होने के बावजूद श्रद्धालु श्रद्धा और भक्ति से इस पहाड़ पर चढ़कर मां के दरबार पहुंचते हैं। जहां मां दुर्गा की स्थापित पिंड का श्रद्धालु पूजा करते है। हालाकि 300 फीट की चढाई के बाद सीढ़िया का सफर खत्म हो जाता है। जिसके बाद 100 फीट की चढ़ाई श्रद्धालु पाइप के सहारे रेंगते हुए चढ़ते हैं।
कष्टदायक सफल होने के बाद भी श्रद्धालु श्रद्धा के साथ मां चंचाल धाम पहुंचते हैं। जहां श्रद्धालु मां के दरबार में घुटनों के बल रेंगते हुए अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए मां के धाम में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। चंचला पहाड़ी लगभग 40 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। स्थानीय लोगों के अनुसार लगभग 200 वर्षों से अधिक समय से यहां पूजा हो रही है। वर्तमान में यहां श्रद्धालुओं के द्वारा दुर्गा मंडप, यज्ञ मंडप, विवाह मंडप सहित कई भवनों का निर्माण के साथ-साथ पहाड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ी का भी निर्माण कराया गया है। लोगों की मान्यता है कि देवी के दर्शन व पूजा से उनकी हर मनोकामना पूरी होती है।
वहीं हृदय नारायण पाण्डेय ने कहा की चंचाल धाम की बहुत पुरानी गाथा है। 1648 के लगभग में जब देवीपुर के राजा इस घनघोर जंगल में शिकार खेलने आए हुए थे। नीचे से ही इस पहाड़ी पर राजा को साक्षात शेर पर सवार मां दुर्गा का दर्शन हुआ था। इसके बाद राजा को आभास हुआ कि यहां पहाड़ पर मां दुर्गा बसे हुए हैं, लेकिन उसे समय पहाड़ पर चढ़ने का कोई साधन नहीं था। इसके बाद राजा जगत नारायण सिंह ने अन्य लोगों और अपने पुरोहितों के साथ रहते हुए इस पहाड़ पर चढ़कर पूजा अर्चना शुरू किए तो पूजा करने के दौरान ही साक्षात मां दुर्गा के स्वरूप में दो जोड़े शेर पूजा स्थल पर खड़े हो गए थे। इसके बाद दर्शन के बाद स्वतः अपने आप चले गए।
वहीं देवीपुर के राजा को मां चंचालिनी ने स्वप्न में आकर उक्त पहाड़ में वास कराने की बात कही थी। इसके बाद राजघराने के द्वारा माता की पूजा-अर्चना शुरू की गई। तब से यहां राजा के परिवार व स्थानीय लोगों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है। शुरुआत में यहां दो ब्राह्मणों के द्वारा पूजा की जा रही थी, अभी फिलहाल यहां 30 ब्राह्मण हैं जो मां दुर्गा की पूजा करते हैं। वहीं इस जगह मां दुर्गा के कन्या स्वरूप की पूजा होती है। इस मंदिर में मां को सिंदूर चढ़ाना वर्जित है। यहां दूर-दराज से आनेवाले श्रद्धालु अपने कष्ट व थकान को भूलकर मां चंचालिनी के दर्शन से धन्य होते हैं। साथ ही प्रकृति की मनोरम वादियों को घंटों निहारते हैं।
20वीं सदी के नौवें दशक तक लोग इस बीहड़ जंगल में प्रवेश करने से भी डरते थे, लेकिन साल 1956 में झरिया की राजमाता सोनामति देवी ने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए एक कच्चा रास्ता बनवाया था। उस दौरान उन्होंने पहाड़ के कठिन रास्ते पर लोहे की दो भारी-भरकम सीढ़ियां लगवाई। हालांकि श्रद्धालुओं की सुविधा को देखते हुए अब मुख्य सड़क से चंचाल पहाड़ी तक पक्की सड़क बनाई गई है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, झरिया के राजा काली प्रसाद सिंह को शादी के कई वर्षों तक संतान सुख नहीं मिल रहा था। उस दौरान मां चंचालिनी के दरबार में मन्नत मांगने के लिए 1956 में अपनी पत्नी सोनामती देवी के साथ मां के दरबार में जंगल के बीच दुर्गम रास्तों से होकर पहुंचे थे और राजा काली प्रसाद सिंह को मां चंचालिनी के आशीर्वाद से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी।
ऐसी मान्यता है कि जो भी लोग गलत उद्देश्य लेकर इस चंचाल पहाड़ पर चढ़ते हैं, उन पर भंवरे के द्वारा आक्रमण कर दिया जाता है। वहीं कहा जाता है कि गलत मंशा से पहुंचने वालों को भंवरा डंक मारकर लहूलुहान कर बेहोश कर देते हैं। मां चंचालिनी के दरबार में श्रद्धालु बिना जल ग्रहण किए ही पहाड़ पर चढ़ते हैं और माता की पूजा में प्रसाद के रूप में अरवा चावल, नारियल और मिश्री चढ़ाते हैं। पूजा स्थल से हटकर दीपक जलने वाली गुफा में ध्यान से देखने पर माता के सात रूप पत्थरों पर उभरे नजर आते हैं। यहां की देखरेख मां चंचालिनी विकास समिति के द्वारा किया जा रहा है। जिसमे मुख्य भूमिका अध्यक्ष भागीरथ सिंह, सचिव गोविंद यादव, कोषाध्यक्ष छोटेलाल पांडे, देवकी राय, सुखदेव राय, नूनमन सिंह, रामेश्वर मुर्मू, संजय पंडित, विनोद राय, रामदेव यादव, रूपन यादव, बीरेंद्र कुमार राय, पप्पू पांडे, पप्पू पांडे, शैलेंद्र पांडे, दीपनारायण पांडे, संतोषी पांडे आदि निभा रहे हैं।