पार्किंसन बीमारी एक तरह का मूवमेंट डिसऑर्डर है जिसमें हाथ या पैर से दिमाग में पहुंचने वाली नसें काम करना बंद कर देती हैं। यह आनुवंशिक कारण के साथ-साथ पर्यावरण विषमताओं की वजह से भी होता है। यह बीमारी शरीर में धीरे-धीरे होती है, इसलिए इसके लक्षण पहचानना कई बार मुश्किल हो जाता है।
50 की उम्र के बाद यदि आपके हाथ-पैर अचानक सुन्न पड़ जाएं, चीजें भूलने लगें और बॉडी पर कंट्रोल बनाने में मुश्किल आए तो यह पार्किंसन बीमारी के लक्षण हो सकते हैं। पार्किंसन एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जो मस्तिष्क के एक हिस्से में तंत्रिका कोशिकाओं (न्यूरॉन्स) के एक छोटे हिस्से को प्रभावित करती है। डॉक्टरों के मुताबिक पार्किंसन एक प्रोग्रेसिव डिसऑर्डर है।
नोएडा के फेलिक्स हॉस्पिल के न्यूरोसर्जन डॉ. सुमित शर्मा कहते हैं कि पार्किंसन में दिमाग की नसें टूटने और नष्ट होने लगती हैं। इसलिए इस बीमारी का प्रभाव शरीर के उन सभी हिस्सों पर होता है, जो तंत्रिका तंत्र या नसों द्वारा नियंत्रित होते हैं।
पार्किंसन के बारे में और जानने से पहले थोड़ा इसके इतिहास के बारे में जान लेते हैं। पार्किंसन बीमारी (Parkinson Disease) का नाम ब्रिटिश डॉक्टर जेम्स पार्किंसंस के नाम पर रखा गया है। जेम्स पार्किसंस ने ही पहली बार साल 1817 में इस बीमारी पर विस्तार से बात की थी। उन्होंने इस बीमारी को ‘शेकिंग पाल्सी’ के रूप में वर्णित किया था। हालांकि इस बीमारी का जिक्र 5000 ईसा पूर्व से मिलता है तब बीमारी को अलग नाम से जानते थे।
पार्किंसन बीमारी की मुख्य वजह दिमाग में डोपामाइन नामक रसायन के स्तर में गिरावट है। एक रिपोर्ट के मुताबिक मस्तिष्क की गहराई में, निग्रा नामक एक क्षेत्र होता है, जिसकी सेल्स डोपामाइन बनाती हैं। डोपामाइन ऐसा रसायन है, जो आपके दिमाग को मैसेज देता है। उदाहरण के लिए आपको खुजली करने का मन हो रहा है तो डोपामाइन उस नर्व को नियंत्रित करने वाले नर्व सेल्स को संदेश भेजता है।
जब निग्रा सेल्स डैमेज होती हैं, तो डोपामाइन का स्तर गिरने लगता है। ऐसे में दिमाग, शरीर के दूसरे अंगों से मिलने वाले संदेशों को पहचानना बंद कर देता है। इसी कंडीशन को पार्किंसन कहते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक डोपामाइन के अलावा पार्किंसन की एक बड़ी वजह अनुवांशिक भी है।
पार्किंसन बीमारी का जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है। डॉ. सुमित कहते हैं कि वैसे तो इस बीमारी का ज्यादा खतरा 50 की उम्र के बाद होता है। लेकिन 20 वर्ष की उम्र वाले व्यक्ति को भी यह बीमारी हो सकती है।
दिल्ली के धर्मशिला नारायणा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अमित श्रीवास्तव अपने एक वीडियो में बताते हैं कि पार्किंसन के लक्षणों को पहचानना बहुत आसान है। यदि कोई एक्टिव आदमी अचानक बहुत स्लो हो गया है या उसकी चाल में फर्क आ गया है और झुककर चलने लगा है, कदम बहुत छोटे छोटे पड़ रहे हैं, हाथ-पैर में एक साइड कंपन आने लगा है, लिखने में दिक्कत हो रही है और आवाज बहुत कम हो गई है तो यह पार्किंसन के लक्षण हो सकते हैं।
कब्ज
अनिद्रा
डिप्रेशन
स्मेल न आना
लार निकलना
पलकों का कम झपकना
चबाने-निगलने में परेशानी
सेक्सुअल डिसफंक्शन
डॉ. अमित कहते हैं कि मेडिकल साइंस में पार्किंसन का बहुत अच्छा इलाज है। अगर लक्षणों को समय पर पहचान लिया जाए और इलाज शुरू कर दें तो मरीज काफी हद तक ठीक हो सकते हैं। दवाइयों के अलावा डीप ब्रेन स्टिमुलेशन यानी डीबीएस जैसे सर्जिकल प्रोसीजर भी हैं। इस प्रक्रिया में हार्ट की तरह ब्रेन में पेसमेकर लगा देते हैं, जिससे मरीज काफी हद तक नॉर्मल हो जाता है।
धर, डॉ. सुमित शर्मा कहते हैं कि पार्किंसन रोग से बचने के लिए अपने आहार में ज्यादा से ज्यादा विटामिन बी 12 को शमिल करें। इससे शरीर में सुन्नपन, दिल की बीमारी और स्ट्रोक का खतरा कम होता है। इसलिए विटामिन बी 12 एक तरह का पूरक भी है, जो शरीर को इस बीमारी से दूर रखने में मदद करता है। इसके अलावा रोजाना एक्सरसाइज करने से भी पार्किंसन की बीमारी का खतरा कम होता है। अपने रूटीन में योग और एक्सरसाइज को जरूर शामिल करें।