मरकच्चो (कोडरमा)। शारदीय नवरात्र की षष्टी तिथि को बेल वरण अनुष्ठान के साथ माता जगत जननी का आह्वान किया गया। विभिन्न पूजा पंडालों के श्रद्धालु पुजारी के नेतृत्व में गाजे-बाजे, ढोल झाल के साथ शुक्रवार शाम को बेल वृक्ष के नीचे पहुंचे तथा वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच कलश स्थापित किया। कलश स्थापना के उपरांत नव पत्रिका की पूजा अर्चना की गई। वहीं दुर्गा मंदिर के पुजारी आचार्य अधीन पांडे ने बताया कि सप्तमी तिथि को कलश तथा बेल के फल का एक जोड़ा पूजा पंडाल में लाया जाएगा। जिसे पूजा स्थल पर विधि विधान से स्थापित कर माता की स्तुति की जाएगी। जिसके बाद वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी और पट श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिए जाएंगे।
उसके उपरांत पूजा पंडाल में महाशक्ति की पूजा अर्चना की गई, जिसमें माता के छठे स्वरूप मां कात्यानी की आराधना की गई। लोगों ने बताया कि देवी कात्यानी के ध्यान पूजन से सांसारिक कष्ट व भय से मुक्ति मिलती है। इस दौरान संपूर्ण पंडाल माता की जयकारों से गुंजायमान होता रहा। शंख घंटे की ध्वनि से वातावरण प्रतिध्वनित होता रहा। बेल वरण के संपन्न होते ही पर्व का उत्साह चरम पर पहुंच गया है और माता के जयकारे गूंज रहे हैं।
माता रानी के छठ्ठे स्वरूप माता कात्यानी देवी की हुई पूजा अर्चना
शारदीय नवरात्र के छठ्ठा दिन मां श्री दुर्गा के छट्ठे स्वरूप देवी कात्यानी को समर्पित है। इस पर विस्तार से बताते हुए मरकच्चो दुर्गा मंदिर में देवघर से आए पुजारी आचार्य आशुतोष पांडे जी ने बताया कि मां दुर्गा के नौ रूपों में छठा रूप माता कात्यायनी देवी का है, यजुर्वेद में प्रथम बार ‘कात्यायनी’ नाम का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए आदि शक्ति देवी के रूप में महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई थीं। महर्षि ने देवी को अपनी कन्या माना था, तभी से उनका नाम ‘कात्यायनी’ पड़ गया।