नई दिल्ली: शराब घोटाले मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत का मामला फंस गया है। केजरीवाल को निचली अदालत से मिली जमानत पर दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अंतरिम रोक लगा दी। लेकिन ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर केजरीवाल की जमानत का मामला क्यों फंस गया?
ईडी ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट के सामने चुनौती दी, जिस पर दोनों पक्षों में जोरदार बहस हुई। इसके बाद हाईकोर्ट ने दो से तीन दिनों तक आदेश सुरक्षित रखा है।
ईडी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने हाईकोर्ट के समक्ष दलील दी कि निचली अदालत का आदेश एकतरफा और गलत है, जो अप्रासंगिक तथ्यों पर आधारित है। निचली अदालत ने तथ्यों पर विचार ही नहीं किया।जमानत रद्द करने के लिए इससे बेहतर मामला नहीं हो सकता।
कौन हैं स्पेशल जज न्याय बिंदु?
न्याय बिंदु ने दिल्ली उत्तर पश्चिम जिले के रोहिणी कोर्ट में सीनियर स्पेशल जज के रूप में काम किया है। उन्होंने द्वारका कोर्ट में भी यही जिम्मेदारी संभाली है। वह सिविल और क्रिमिनट दोनों तरह के कानूनों से अच्छी तरह वाकिफ हैं।
आदेश में क्या कहा?
केजरीवाल को जमानत देते हुए उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया में उनका अपराध अभी तक स्थापित नहीं हुआ है। यह संभव हो सकता है कि आवेदक के कुछ परिचित व्यक्ति किसी अपराध में शामिल हों, लेकिन ईडी अपराध की आय के संबंध में आवेदक के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत देने में विफल रहा है। उन्होंने केजरीवाल के इस दावे पर ईडी की चुप्पी पर भी सवाल उठाया कि उन्हें कथित आबकारी घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में सीबीआई की एफआईआर या एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग एजेंसी द्वारा दर्ज ईसीआईआर में नाम दर्ज किए बिना गिरफ्तार किया गया था।
जज ने अपने फैसले में कह, “यह भी ध्यान देने योग्य है कि ईडी इस तथ्य के बारे में चुप है कि गोवा में विधानसभा चुनावों में ‘आप’ द्वारा अपराध की आय का उपयोग कैसे किया गया है। दो साल बीत जाने के बाद भी कथित राशि का बड़ा हिस्सा पता लगाना बाकी है।” जज ने कहा कि ईडी यह स्पष्ट करने में विफल रहा है कि पूरे पैसे के निशान का पता लगाने में उसे कितना समय लगेगा।
उन्होंने आगे लिखा, “इसका मतलब यह है कि जब तक ईडी द्वारा शेष राशि का पता लगाने की यह कवायद पूरी नहीं हो जाती, तब तक आरोपी को सलाखों के पीछे रहना चाहिए, वह भी उसके खिलाफ उचित सबूतों के बिना। यह भी ईडी का स्वीकार्य तर्क नहीं है।”