लंदन: क्या आप सोच सकते हैं कि कोई इंसान 20 साल तक बिना फल और सब्ज़ियों के ज़िंदा रह सकता है? जी हां, ब्रिटेन की 27 वर्षीय क्लो राइसबेक (Chloe Raisbeck) की ज़िंदगी कुछ ऐसी ही है। क्लो को एक दुर्लभ बीमारी ओरल एलर्जी सिंड्रोम (Oral Allergy Syndrome – OAS) है, जिसके कारण वह पिछले दो दशकों से किसी भी तरह के फल, सब्ज़ी या मेवे को छू भी नहीं पातीं।
7 साल की उम्र में हुआ था पहली बार एलर्जी का अनुभव
वेस्ट मिडलैंड्स की रहने वाली क्लो जब मात्र 7 वर्ष की थीं, तब स्कूल में पीच (आड़ू) खाने के बाद उनके होंठ सूज गए और गले में खुजली होने लगी। धीरे-धीरे यह एलर्जी इतनी गंभीर होती गई कि अब उन्हें 15 से अधिक फलों, सब्जियों और मेवों से एलर्जी है। इनमें सेब, कीवी, केला, गाजर, शिमला मिर्च और बादाम जैसी आम चीजें भी शामिल हैं।
क्या होता है ओरल एलर्जी सिंड्रोम?
ओरल एलर्जी सिंड्रोम एक प्रकार की फूड एलर्जी है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम कुछ खास फलों, सब्ज़ियों और मेवों में मौजूद प्रोटीन को परागकण (Pollen) जैसा समझकर रिएक्ट करता है। इस कारण यह एलर्जी गंभीर रूप ले सकती है और एनाफिलेक्टिक शॉक तक पहुंच सकती है, जो जानलेवा साबित हो सकता है।
लक्षण क्या होते हैं?
इस एलर्जी के लक्षणों में होंठ, मुंह, जीभ और गले में खुजली, सूजन, जलन, गले में खराश, कान में खुजली, त्वचा पर लाल दाने या पित्ती निकलना शामिल हैं। गंभीर मामलों में सांस लेने में दिक्कत और बेहोशी जैसी स्थिति भी बन सकती है।
क्या खाती हैं क्लो?
क्लो को डॉक्टरों ने सख्त चेतावनी दी है कि अगर गलती से भी उन्होंने एलर्जी वाले खाद्य पदार्थ खा लिए, तो उनकी जान भी जा सकती है। इसलिए वे केवल मांस, मछली, चावल, पास्ता और डेयरी उत्पाद ही खाती हैं। फलों और सब्जियों से मिलने वाले पोषण की पूर्ति के लिए उन्हें विटामिन सप्लीमेंट्स लेने पड़ते हैं।
खाने से हो गया है डर
क्लो कहती हैं, “मुझे खाने से डर लगता है। हर बार यह डर बना रहता है कि कहीं कोई अनजाना तत्व मेरी जान न ले ले। पिछले 20 साल में मैंने एक भी हरी सब्ज़ी नहीं खाई है।” हालांकि, अब वे इस डर से लड़ने की कोशिश कर रही हैं और उम्मीद करती हैं कि एक दिन इस एलर्जी पर काबू पा सकेंगी।
क्या OAS का कोई इलाज है?
ओरल एलर्जी सिंड्रोम का इलाज पूरी तरह संभव नहीं है, लेकिन एलर्जी की जांच और विशेषज्ञ की सलाह से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इम्यूनोथेरेपी, एलर्जन अवॉइडेंस और जीवनशैली में बदलाव के जरिए स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है।