कोडरमा। दलित शोषण मुक्ति मंच के द्वारा सोमवार को अम्बेडकर पार्क कोडरमा में मनुस्मृति की प्रतियां जलाकर मनुस्मृति दहन दिवस मनाया गया। इससे पूर्व बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतीमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित किया गया। जहां बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर अमर रहे, मनुस्मृति मुर्दाबाद, वर्ण व्यवस्था मुर्दाबाद, भारत का संविधान जिन्दाबाद आदि नारे लगाए गए। वहीं दलित शोषण मुक्ति मंच के जिला अध्यक्ष दिनेश रविदास ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि सदियों पूर्व स्वयं भू मनु द्वारा कल्पनिक रुप से लिखी गई मनुस्मृति लोगों के शोषण पर आधारित पुस्तक है, जो एक मनुष्य को बहुत बडा और दूसरे को बहुत छोटा बताता है, यह व्यवस्था आज भी लागू है और यही कारण है कि आजादी के 77 वर्ष बाद भी कहीं न कहीं देश के हर कोने में जातीय आधार पर दलितों और कमजोर वर्गों के उपर जुल्म व शोषण जारी है।
सीटू के राज्य सचिव संजय पासवान ने अपने संबोधन में कहा कि 25 दिसम्बर 1927 को बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर को पहली बार मनुस्मृति का प्रतीकात्मक रूप से दहन करना पड़ा था, उसी दिन से हर वर्ष देशभर में मनुस्मृति दहन दिवस मनाया जाने लगा। उस दौर में भारतीय समाज में जो कानून चल रहा था, वह मनुस्मृति के विचारों पर आधारित था. जो एक ब्राह्मणवादी, पुरुष सत्तात्मक, भेदभाव वाला कानून था, जिसमें इंसान को जाति और वर्ग के आधार पर बांटा गया था। हजारों वर्षों से देश जातिवाद का दंश झेल रहा है, जो आज के इस आधुनिक दौर में और भी विकराल रूप ले लिया है। महिलाओं के अधिकारों की बात हो या वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर माने जाने वाले शूद्र की हम इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि मनुष्य-मनुष्य का दुश्मन हो गया है। जब से केंद्र की सत्ता में भाजपा की सरकार आई है, संविधान बनाम मनुस्मृति पर चर्चा गरमाने लगी है।
लगातार संविधान पर प्रहार किया जा रहा है, कभी एससी, एसटी एक्ट के बहाने, कभी 13 प्वाइंट रोस्टर के बहाने तो कभी संविधान की प्रतियां को जलाने के बहाने और अब नागरिकता संशोधन कानून के बहाने। इसलिए मनुस्मृति दहन दिवस आज और भी प्रासंगिक है। कार्यक्रम में रंजीत राम, शिवपुजन पासवान, तानेश्वर, सुरेश, सियाराम, गोपाल दास, मनोज पासवान, बिनू दास, मंगल दास, सुरेश दास, अशोक पासवान आदि मौजूद थे।