KhabarMantra: आज उत्तर भारत के कई राज्यों—बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश—में सतुआन पर्व पूरे श्रद्धा और पारंपरिक उल्लास के साथ मनाया गया। चैत्र शुक्ल सप्तमी को मनाया जाने वाला यह पर्व न केवल गर्मी की शुरुआत का संकेत देता है, बल्कि यह ग्रामीण जीवनशैली, धार्मिक आस्था और स्वास्थ्यप्रद खानपान की परंपराओं को भी जीवंत करता है,
गर्मी के मौसम का स्वागत – ठंडे खानपान की शुरुआत
सतुआन पर्व के दिन से ही लोगों का खानपान गर्मी को ध्यान में रखकर बदल जाता है. शरीर को ठंडक पहुँचाने वाले पारंपरिक पेय जैसे बेल का शरबत, आम का पन्ना, सत्तू का घोल, जलजीरा और दही-चावल का सेवन शुरू होता है. ये सभी चीजें न केवल स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि शरीर को गर्मी से भी बचाती हैं.
शुभ कार्यों का आरंभ – मांगलिक कार्यों के लिए पहला शुभ दिन
चैत्र नवरात्रि की समाप्ति के बाद सतुआन पहला ऐसा दिन होता है जिसे अत्यंत शुभ माना जाता हैस इस दिन से ही शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत की जाती है. इसे शुभ ऊर्जा और सकारात्मकता से भरपूर दिन माना गया है.
सतुआन का विशेष प्रसाद – सात्विक और पौष्टिक भोज
इस अवसर पर पारंपरिक व्यंजनों का विशेष महत्व होता है. मुख्य प्रसाद में होता है:
– सत्तू (भुना चना आटा)
– गुड़
– कच्चा आम
– चना और दही
– नीम की पत्तियां
ये सभी सामग्री गर्मी से लड़ने में मददगार, पाचन में सहायक और शुद्ध सात्विक आहार के रूप में जानी जाती हैं.
पूजा-पाठ और व्रत का महत्व
ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और अपने परिवार की सुख-शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं. सूर्य देव, ग्राम देवताओं और पंचतत्वों की पूजा की जाती है. स्नान के बाद पूजा कर पारंपरिक प्रसाद ग्रहण किया जाता है.
गंगा स्नान और दान – पुण्य कमाने का दिन
धार्मिक परंपरा के अनुसार इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान, फिर सत्तू, गुड़, चना, ककड़ी, खरबूजा आदि का दान करना बेहद पुण्यकारी माना जाता है. यह शरीर को शुद्ध करता है और आत्मा को शांति देता है.
लोकगीतों और सामूहिक भोज का आयोजन
सतुआन पर्व गांवों में सामूहिकता और मेलजोल का पर्व भी है. महिलाएं पारंपरिक लोकगीत गाकर, एक-दूसरे के घर जाकर भोज करती हैं, जिससे सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक संबंधों को बल मिलता है.
सूर्य पूजा का विशेष महत्व
मान्यता है कि इस दिन सूर्य की आराधना से ना केवल स्वास्थ्य बेहतर रहता है, बल्कि जीवन में ऊर्जा, आत्मबल और सकारात्मकता का संचार होता है.
सतुआन: परंपरा, प्रकृति और स्वास्थ्य का अद्भुत संगम
सतुआन पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्रकृति से सामंजस्य, शारीरिक स्वास्थ्य, और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है. यह पर्व हमें भारतीय ग्रामीण संस्कृति की जड़ों से जोड़ता है और एक संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देता है.